सार
प्रयागराज महाकुंभ 2025: “मासानामा मासोत्तमे मासे, माघ मासे शुक्ल पक्षे यथा तिथौ...” यह पवित्र महामंत्र इन दिनों प्रयागराज के महाकुंभ में गूंज रहा है। संगम के 44 घाटों पर यह मंत्र सिर्फ सनातन परंपराओं की गूंज नहीं, बल्कि तीर्थ पुरोहितों की अमूल्य महत्ता का प्रतीक है। इस वर्ष का महाकुंभ न केवल भव्यता और आधुनिकता का संगम है, बल्कि इसने तीर्थ पुरोहितों के जीवन में भी नई रोशनी और समृद्धि का संचार किया है।
महाकुंभ 2025: एक नई शुरुआत
संगम घाट पर विराजमान तीर्थ पुरोहित बृजेश द्विवेदी उत्साह के साथ बताते हैं, "महाकुंभ 2025 हमारे लिए केवल एक आध्यात्मिक आयोजन नहीं है, यह हमारे जीवन को बेहतर बनाने का अवसर भी है। इस बार श्रद्धालुओं की भारी भीड़ और उनकी उदार दान प्रवृत्ति ने हमारी आय में भारी इजाफा किया है।" 2019 के कुंभ में जहां एक तीर्थ पुरोहित प्रतिदिन 500 से 1000 रुपये कमाते थे, वहीं इस वर्ष यह आंकड़ा 2000 से 2500 रुपये तक पहुंच गया है। यह न केवल तीर्थ पुरोहितों की मेहनत का फल है, बल्कि श्रद्धालुओं के बढ़ते विश्वास और श्रद्धा का भी प्रतीक है।
अब क्यू आर कोड से ले रहे आनलाइन दक्षिणा
घाटों पर बैठने वाले तीर्थ पुरोहित सिर्फ मंत्रोच्चारण तक सीमित नहीं रहते। इनके कार्यों में गंगा स्नान के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को संकल्प मंत्र पढ़ाना, धार्मिक अनुष्ठान करवाना और उनकी व्यक्तिगत सुरक्षा का ध्यान रखना शामिल है। इस बार एक खासियत और हुई कि तीर्थ पुरोहितों ने दक्षिणा भी आनलाइन लेना शुरू कर दिया है। तीर्थ पुरोहितों ने अपने तख्ते पर छाते के नीचे क्यू आर कोड टांगे हुए हैं।
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क्या है तीर्थ पुरोहितों की खासियत?
- आध्यात्मिक मार्गदर्शन: तीर्थ पुरोहित, श्रद्धालुओं के लिए धार्मिक और आध्यात्मिक यात्रा का मार्गदर्शन करते हैं।
- सुरक्षा और सहायता: श्रद्धालु जब संगम में डुबकी लगाते हैं, तो उनके सामान और कपड़ों की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुरोहित उठाते हैं।
- अनूठा रिश्ता: श्रद्धालु और तीर्थ पुरोहित के बीच का रिश्ता केवल सेवा तक सीमित नहीं है। यह एक सदियों पुरानी परंपरा है, जो श्रद्धालु को आध्यात्मिक शांति प्रदान करती है।
हाईटेक यजमानी का युग
महाकुंभ 2025 ने केवल आयोजन को हाईटेक नहीं बनाया, बल्कि तीर्थ पुरोहितों की यजमानी को भी आधुनिकता से जोड़ दिया है। मोबाइल एप्स और डिजिटल पेमेंट की सुविधा ने दान प्रक्रिया को सरल बना दिया है। अब श्रद्धालु सिर्फ नकद ही नहीं, बल्कि ऑनलाइन माध्यम से भी दान कर रहे हैं, जिससे तीर्थ पुरोहितों की आय में बड़ा बदलाव आया है।
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महाकुंभ 2025: श्रद्धा और समृद्धि का संगम
यह महाकुंभ केवल श्रद्धालुओं के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र नहीं है, बल्कि तीर्थ पुरोहितों के लिए समृद्धि का एक नया द्वार भी है। इस आयोजन ने प्रयागराज की महिमा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया है और तीर्थ पुरोहितों को सनातनी परंपराओं और आधुनिकता के बीच सेतु के रूप में स्थापित किया है। महाकुंभ 2025 का यह अध्याय इतिहास में केवल धार्मिक आयोजन के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसा पर्व बनकर याद रखा जाएगा, जिसने परंपरा और तकनीक को एक साथ लाने का अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया।