सार

प्रयागराज में महाकुंभ मेला चल रहा है. लोग भारी संख्या में आ रहे हैं और सरकार उनके लिए उचित व्यवस्था कर रही है. लेकिन ब्रिटिश काल में यह एक व्यवसाय था. सरकार श्रद्धालुओं से कर वसूलती थी. उस समय एक रुपये की कीमत कितनी थी, जानते हैं?
 

एक रुपया लेकर अगर आज दुकान पर जाएं तो लोग हंसेंगे. बच्चे पूछेंगे कि इस एक रुपये में क्या मिलेगा? लाखों रुपये भी इकट्ठे हो जाएं, लेकिन एक रुपये की कोई कीमत नहीं रह गई है. पहले पैसे का महत्व था. एक पैसे से लेकर दस पैसे, 25 पैसे, 50 पैसे, इन पैसों में भी खाने-पीने की चीजें मिल जाती थीं. अगर कोई एक रुपया लेकर बाजार जाता था तो वह अमीर माना जाता था. बैग भरकर सामान लाना तय था. 

1822 में हम पर ब्रिटिश शासन था. वे सबसे ज्यादा 10 रुपये वेतन देते थे. इसलिए उन दिनों एक रुपया बहुत बड़ी रकम होती थी. एक दर्जी को महीने में सिर्फ 8 रुपये मिलते थे. कूड़ा उठाने वाले को 4 रुपये मिलते थे. ज्यादातर लोग एक रुपये को बहुत बड़ी रकम मानते थे. एक रुपया जोड़ना भी बहुत मुश्किल होता था. ब्रिटिश लोगों ने इसी का फायदा उठाया. 

कुंभ मेले में एक रुपये का कर: उस समय ब्रिटिश लोगों ने कुंभ मेले को व्यवसाय बना लिया था. उन्हें धार्मिक परंपराओं से कोई मतलब नहीं था. उन्हें सिर्फ पैसा चाहिए था. भारतीयों को परेशान करने के लिए उन्होंने कुंभ मेले में आने वालों पर एक रुपये का कर लगा दिया. पवित्र नदी में स्नान करने के लिए श्रद्धालुओं को एक रुपये का कर देना पड़ता था. यूनाइटेड किंगडम के वेल्स में जन्मी फैनी पार्क्स ने 1806 में यह कर प्रणाली शुरू की थी. कुंभ मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या को देखते हुए, ईस्ट इंडिया कंपनी ने उन पर कर लगाने का फैसला किया. इसका बहुत विरोध हुआ. कर के कारण कुंभ मेले में आने वालों की संख्या कम हो गई. इससे स्थानीय लोगों को, जिनकी आजीविका इसी पर निर्भर थी, बहुत नुकसान हुआ. आगे चलकर यह स्वतंत्रता संग्राम का एक कारण भी बना. 

एक रुपये का नोट कब आया?: सिक्कों में चलने वाला लेन-देन 1917 में नोटों में बदल गया. 1917 में एक रुपये का नोट छापा गया. एक रुपये का नोट आज के 390 रुपये के बराबर था. पहले विश्व युद्ध के समय और जब देश पर ब्रिटिश शासन था, तब चांदी का एक रुपये का सिक्का होता था. युद्ध के कारण सरकार चांदी के सिक्के नहीं बना पा रही थी. इसलिए 1917 में पहली बार एक रुपये का नोट छापा गया. 

कपड़े, चावल, गेहूं, चप्पल जैसी जरूरी चीजें एक रुपये में मिल जाती थीं. कुछ लोगों ने अपना घर, जमीन भी इसी दाम में खरीदी थी. लेकिन आज एक रुपये में क्या मिलेगा, यह ढूंढना पड़ता है. बहुत मुश्किल से शैंपू का पैकेट, टॉफी जैसी कुछ चीजें ही एक रुपये में मिलती हैं.