सार
प्रयागराज। महाकुंभ 2025 में महासंगम यात्रा का आगाज शनिवार को त्रिवेणी संगम से हुआ। इस यात्रा का पहला पड़ाव त्रिवेणी संगम था, जहां साधु संतों और श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाकर 108 त्रिशूल लेकर इस यात्रा की शुरुआत की। यह यात्रा महाकुंभ क्षेत्र से 25 जनवरी को शुरू होकर 26 फरवरी को नई दिल्ली में समाप्त होगी।
महासंगम यात्रा का मार्ग और उद्देश्य
महासंगम यात्रा का मार्ग विशेष रूप से इस तरह से तैयार किया गया है कि यह अधिकतम धार्मिक स्थलों को कवर कर सके। इस यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन कराए जाएंगे, जो भारतीय हिंदू धर्म के सबसे प्रमुख तीर्थस्थलों में गिने जाते हैं। इन ज्योतिर्लिंगों में प्रमुख हैं:
- सोमनाथ (गुजरात)
- मल्लिकार्जुन (आंध्र प्रदेश)
- महाकालेश्वर (उज्जैन)
- ओंकारेश्वर (मध्य प्रदेश)
- वैद्यनाथ (झारखंड)
- भीमाशंकर (महाराष्ट्र)
- काशी विश्वनाथ (वाराणसी)
- त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र)
- केदारनाथ (उत्तराखंड)
- नागेश्वर (गुजरात)
- रामेश्वर (तमिलनाडु)
- घृष्णेश्वर (महाराष्ट्र)
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इसके अलावा, यात्रा के दौरान चार धामों (बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री) के दर्शन भी कराए जाएंगे, जो हिंदू धर्म में अतुलनीय महत्व रखते हैं।
यह यात्रा लगभग 2000 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करेगी और लगभग एक महीने में पूरी होगी। यात्रा के दौरान बौद्ध मठों और अन्य धार्मिक स्थलों के दर्शन भी कराए जाएंगे, जिससे भारतीय संस्कृति और परंपराओं को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया जाएगा।
महामंडलेश्वर नवल किशोर दास का नेतृत्व
इस महासंगम यात्रा का नेतृत्व महामंडलेश्वर नवल किशोर दास कर रहे हैं, जो अपने धार्मिक अनुभवों और ज्ञान से इस यात्रा को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने यात्रा की शुरुआत के दौरान कहा था:
"महासंगम यात्रा केवल एक भौतिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह आत्मा की शुद्धि, शरीर के उपचार और मानस की शुद्धि का एक अनुष्ठान है।"
उन्होंने इस यात्रा को धर्म, संस्कृति और समाज को जोड़ने का एक अनूठा प्रयास बताया। उनके अनुसार, यह यात्रा न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक समरसता और भाईचारे को बढ़ावा देने का भी एक मंच है।
यात्रा के दौरान विशेष आयोजन
महासंगम यात्रा के दौरान हर तीर्थ स्थल पर विशेष धार्मिक अनुष्ठान, भजन संध्या, प्रवचन और सामाजिक संवाद आयोजित किए जाएंगे। ये सभी आयोजन इस यात्रा को एक आध्यात्मिक अनुभव में बदल देंगे।
- पवित्र जल से स्नान: हर तीर्थ स्थल पर श्रद्धालुओं को पवित्र जल से स्नान करने का अवसर मिलेगा, जिससे वे आत्मिक शुद्धि का अनुभव करेंगे।
- विशेष पूजा-अर्चना: विभिन्न मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर पूजा-पाठ एवं हवन का आयोजन किया जाएगा।
- धार्मिक संगोष्ठियाँ: यात्रा के दौरान आध्यात्मिकता और भारतीय संस्कृति पर आधारित विचार-विमर्श भी किया जाएगा।
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