सार
महाकुंभ नगर, 26 जनवरी 2025: 76वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर, एक ऐतिहासिक ध्वजारोहण समारोह आयोजित किया गया, जिसमें राष्ट्रसंत पूज्य मोरारी बापू, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती और डॉ. साध्वी भगवती सरस्वती ने परमार्थ त्रिवेणी पुष्प आश्रम, अरैल घाट, प्रयागराज में भारतीय तिरंगे को शान से फहराया। यह समारोह महाकुंभ के अवसर पर आयोजित हुआ, जिसमें भारतीय संस्कृति, धर्म और परंपराओं के संरक्षण का संदेश प्रसारित किया गया।
गणतंत्र दिवस पर राष्ट्र के प्रति आस्था और सम्मान का उत्सव
इस विशेष अवसर पर, संतों ने न केवल तिरंगे को सलामी दी, बल्कि देशवासियों से आह्वान किया कि वे अपनी जड़ों से जुड़े रहें और भारतीय संस्कारों और परंपराओं को गर्व से संजोए रखें। पूज्य मोरारी बापू ने कहा, “लोकतंत्र एक तट है, और वेद मंत्र दूसरा किनारा है। लोकतंत्र और वेद मंत्र के बीच परमार्थ का प्रवाह प्रवाहित हो रहा है।”
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"वयं राष्ट्रे जागृयाम पुरोहिताः" - बापू का संदेश
पूज्य मोरारी बापू ने गणतंत्र दिवस की महत्ता पर जोर देते हुए कहा कि यह केवल एक नारा नहीं है, बल्कि एक प्रेरणा है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म और संस्कृति को हर घर में जागृत करना जरूरी है, ताकि हर व्यक्ति अपने आस्थाओं और मूल्यों को समझे और उन पर गर्व महसूस करे।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का संबोधन
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने इस दिन के महत्व को और भी बढ़ाते हुए कहा, "गणतंत्र दिवस, सनातन लोकतंत्र का पर्व है। भारत का लोकतंत्र हमारी संस्कृति, हमारी पहचान और हमारे जीवन के मूल्यों की दिव्य अभिव्यक्ति है।" उन्होंने यह भी कहा कि परमार्थ त्रिवेणी पुष्प आश्रम के माध्यम से एक नए प्रयास की शुरुआत की जा रही है, जिसमें समाज के हर वर्ग को देशभक्ति और देवभक्ति से जोड़ने और संस्कारों से ओतप्रोत करने का प्रयास किया जाएगा।
जीवन को यज्ञ के रूप में जीने का संदेश
स्वामी जी ने अपने संबोधन में जीवन को यज्ञ के रूप में जीने का संदेश देते हुए कहा, "राष्ट्र का हर प्रयोग संगम बने और हमारा जीवन यज्ञ बने।" यह संदेश न केवल हमारे जीवन के उद्देश्यों को स्पष्ट करता है, बल्कि देश की अखंडता और प्रगति के लिए हमारी जिम्मेदारियों को भी उजागर करता है।
संकल्प लें, एक मजबूत और एकजुट भारत का निर्माण करें
इस पावन अवसर पर हम सभी को अपने राष्ट्र की प्रगति और अखंडता के लिए कार्य करने का संकल्प लेना होगा। इस समारोह ने हमें न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर को सम्मानित करने का अवसर दिया, बल्कि यह हमें अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को भी याद दिलाया।
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