सार
Prayagraj Mahakumbh 2025:किन्नर अखाड़े की संत अलीजा बाई राठौर, देश की पहली किन्नर ड्रेडलॉक आर्टिस्ट, महाकुंभ 2025 में अपनी कला का प्रदर्शन कर रही हैं। जौनपुर से मुंबई और फिर इंदौर तक के सफर में उन्होंने समाज की दुत्कार को सहते हुए अपनी पहचान बनाई।
महाकुंभ नगर, 2025: महाकुंभ 2025 का आयोजन जहाँ लाखों श्रद्धालुओं के लिए एक आध्यात्मिक अनुभव बन चुका है, वहीं एक नई और प्रेरणादायक कहानी भी इस बार सुर्खियों में है। किन्नर अखाड़े से जुड़ी संत अलीजा बाई राठौर, जो न केवल देश की पहली किन्नर ड्रेडलॉक आर्टिस्ट हैं, बल्कि समाज की दुत्कार को सहते हुए अपने हुनर और आत्मविश्वास से एक नई पहचान बना चुकी हैं, इन दिनों महाकुंभ में चर्चाओं का हिस्सा बनी हुई हैं।
जौनपुर से मुंबई और फिर इंदौर तक का सफर
अलीजा का जीवन संघर्षों से भरा हुआ था। उत्तर प्रदेश के जौनपुर में जन्मी अलीजा का बचपन सामान्य नहीं था। थर्ड जेंडर होने के कारण उन्हें समाज से भेदभाव का सामना करना पड़ा। हालांकि, अपनी मेहनत और लगन से उन्होंने समाज की सोच को चुनौती दी। अलीजा ने कंप्यूटर सॉफ्टवेयर में उच्च शिक्षा प्राप्त की और एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम भी किया, लेकिन वहाँ भेदभाव और मानसिक तनाव ने उन्हें नौकरी छोड़ने पर मजबूर कर दिया।
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महाकाल से मिली प्रेरणा और किन्नर अखाड़े से जुड़ाव
नौकरी छोड़ने के बाद अलीजा ने महाकाल की शरण ली और यहाँ उनकी मुलाकात किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर डॉ. लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी से हुई। गुरु दीक्षा लेने के बाद उन्होंने किन्नर अखाड़े का हिस्सा बनकर संतों की जटाओं को सजाने की कला सीखी। यह कला आज उनके करियर का अहम हिस्सा बन चुकी है।
इंदौर में अकादमी की स्थापना
अलीजा ने इंदौर में एक अकादमी स्थापित की, जहां वह ड्रेडलॉक बनाने और सजाने की कला सिखाती हैं। यह अकादमी न केवल बालों की कला को नया रूप देती है, बल्कि यह थर्ड जेंडर समुदाय के लिए आत्मनिर्भर बनने का एक मंच भी है। इस अकादमी के माध्यम से वह समाज को यह संदेश देती हैं कि भेदभाव के बावजूद हर किसी को अपनी पहचान बनाने का हक है।
महाकुंभ में अनोखी पहल
महाकुंभ के दौरान अलीजा बाई राठौर ने पहली बार एक ड्रेडलॉक सैलून खोला, जहां साधु-संतों की जटाओं को संवारने का कार्य किया जा रहा है। यह पहल महाकुंभ में एक नया आयाम जोड़ती है और अलीजा की कला को एक नया मंच प्रदान करती है।
समाज को दिया अहम संदेश
अलीजा का मानना है, "हमारी शारीरिक बनावट ईश्वर की देन है, इसमें किसी को भेदभाव नहीं करना चाहिए। समाज हमें अलग नजर से देखता है, लेकिन हमें खुद पर विश्वास और अपनी कला से आगे बढ़ने की जरूरत है।" उनका यह संदेश न केवल किन्नर समुदाय के लिए है, बल्कि यह समाज के हर वर्ग के लिए प्रेरणा है कि आत्मविश्वास और कड़ी मेहनत से कोई भी चुनौती पार की जा सकती है।
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