Vrindavan Temple Ordinance: बांके बिहारी मंदिर अब नए ट्रस्ट के हाथों में होगा। क्या पूजा-पद्धति बदलेगी? श्रद्धालुओं के लिए क्या सुविधाएं आएंगी? जानिए नए अध्यादेश की पूरी कहानी।
Banke Bihari Temple Trust: वृंदावन के प्रसिद्ध श्री बांके बिहारी जी मंदिर को लेकर एक ऐतिहासिक फैसला लिया गया है। मंदिर की प्राचीन धार्मिक परंपराओं को संरक्षित रखते हुए, अब श्रद्धालुओं की सुविधा और प्रबंधन का जिम्मा एक नए ट्रस्ट को सौंपा जाएगा। इस उद्देश्य से राज्यपाल की ओर से एक अध्यादेश जारी कर दिया गया है, जिससे मंदिर का संचालन अधिक सुव्यवस्थित और पारदर्शी हो सकेगा।
सरकारी दखल नहीं, परंपराएं जस की तस रहेंगी
अध्यादेश में स्पष्ट किया गया है कि मंदिर में पूजा-पद्धति, अनुष्ठान, त्योहार और रीतियों में किसी भी प्रकार का सरकारी हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। ट्रस्ट का उद्देश्य सिर्फ व्यवस्थागत सुधार और श्रद्धालुओं के अनुभव को बेहतर बनाना है, न कि धार्मिक परंपराओं में बदलाव।
11 नामित और 7 पदेन ट्रस्टी, सभी होंगे सनातन धर्मावलंबी
नए ट्रस्ट 'श्री बांके बिहारीजी मंदिर न्यास' में कुल 18 सदस्य होंगे, जिनमें से 11 नामित और 7 पदेन ट्रस्टी होंगे। सभी ट्रस्टियों का चयन इस शर्त पर किया जाएगा कि वे सनातन धर्म को मानने वाले हिन्दू हों। नामित सदस्यों में वैष्णव परंपराओं और अन्य संप्रदायों से जुड़े संत-महंत, शिक्षाविद, उद्यमी और गोस्वामी परंपरा के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
तीन साल का कार्यकाल, दो बार से अधिक नहीं हो सकेगी नियुक्ति
नामित ट्रस्टियों का कार्यकाल 3 वर्षों का होगा और कोई भी व्यक्ति अधिकतम दो बार ही इस पद पर रह सकेगा। पदेन ट्रस्टियों में मथुरा के डीएम, एसएसपी, नगर आयुक्त और ब्रज तीर्थ विकास परिषद के CEO जैसे प्रशासनिक अधिकारी शामिल रहेंगे।
श्रद्धालुओं के लिए मिलेंगी विश्वस्तरीय सुविधाएं
इस नए ढांचे के अंतर्गत दर्शन व्यवस्था, पुजारियों की नियुक्ति, वेतन व्यवस्था, आगंतुकों की सुरक्षा और मंदिर प्रबंधन को आधुनिक व विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस किया जाएगा। इसका मुख्य उद्देश्य मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं को बेहतर अनुभव प्रदान करना है।
ट्रस्ट रहेगा स्वतंत्र, लेकिन जवाबदेही रहेगी पूरी
न्यास को राज्य सरकार की विशेष मंजूरी केवल बड़ी संपत्तियों की बिक्री या हस्तांतरण के मामलों में लेनी होगी। अन्यथा यह एक स्वतंत्र और स्वायत्त संस्था की तरह कार्य करेगा। वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए राज्य सरकार को ट्रस्ट की लेखा पुस्तकों की स्वतंत्र ऑडिट का अधिकार भी प्राप्त होगा।
इस पूरे अध्यादेश का सार यही है कि सरकार श्रद्धा और आस्था से जुड़ी परंपराओं में हस्तक्षेप किए बिना व्यवस्थागत सुधार लाना चाहती है। ट्रस्ट के गठन से मंदिर की धार्मिक गरिमा बनी रहेगी, वहीं आधुनिकता के साथ तीर्थ अनुभव भी बेहतर होगा।
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