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राणा पूंजा की जाति पर मचा बवाल: चित्तौड़गढ़ में प्रतिमा अनावरण के बाद राजपूत और भील आमने-सामने
Rana Poonja statue controversy: चित्तौड़गढ़ में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा राणा पूंजा (Rana Poonja) की प्रतिमा के अनावरण के बाद एक पुराने विवाद ने नई आग पकड़ ली है। राजपूत और आदिवासी भील आमने-सामने आ चुके हैं।
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महाराणा प्रताप का साथ देने वाले सबसे ताकतवर योद्धाओं में एक थे राणा पूंजा
चित्तौड़गढ़ में मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा द्वारा राणा पूंजा की प्रतिमा के अनावरण के बाद राजपूत और भील समुदायों के बीच जातीय विवाद गहरा गया है। राजपूत उन्हें सोलंकी क्षत्रिय बताते हैं तो भील उन्हें अपना आदिवासी वीर मानते हैं। हल्दीघाटी युद्ध (Battle of Haldighati) में राणा पूंजा पूरी ताकत के साथ महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) के साथ मिलकर लड़े थे।
क्या है विवाद का कारण?
अनावरण की गई प्रतिमा में राणा पूंजा को धोती पहने और धनुष-बाण के साथ दर्शाया गया है। राजपूत समुदाय इसे अनुचित बताते हुए कहते हैं कि राणा पूंजा सोलंकी वंश के क्षत्रिय थे और उनकी पोशाक भी उसी अनुरूप होनी चाहिए थी। दूसरी ओर, भील समुदाय इसे अपने इतिहास से छेड़छाड़ बता रहा है और दावा कर रहा है कि राणा पूंजा एक भील योद्धा थे।
भील सेना का विरोध और दावा
भील सेना (Bhil Sena) ने जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपकर आरोप लगाया कि इतिहास के साथ छेड़छाड़ की जा रही है। संगठन के जिला अध्यक्ष गोपाल लाल भील ने कहा कि हल्दीघाटी के युद्ध में जो धनुष-बाण और धोती में लड़ा, वह राणा पूंजा था और वह हमारे भील समाज का गौरव है।
महाराणा प्रताप की सेना और 36 जातियों का योगदान
जौहर स्मृति संस्थान के कार्यकर्ता तेजपाल सिंह का कहना है कि प्रतिमा में राणा पूंजा की पोशाक गलत है। यह क्षत्रिय पोशाक होनी चाहिए और प्रतिमा पर 'राणा पूंजा सोलंकी' लिखा जाना चाहिए।
राजपूत समुदाय का कहना है कि महाराणा प्रताप की सेना में 36 जातियों के लोग शामिल थे, जिनमें भील भी थे। लेकिन इससे यह सिद्ध नहीं होता कि राणा पूंजा स्वयं भील थे। उनके अनुसार, यह सिर्फ सामाजिक एकता का प्रतीक है, न कि किसी की जाति की पुष्टि।
पानरवा राजपरिवार की चिट्ठी और पीएम मोदी से अपील
पानरवा के पूर्व शाही परिवार ने 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर दावा किया था कि राणा पूंजा उनके पूर्वज थे और वे सोलंकी क्षत्रिय हैं। कृष्णा सोलंकी द्वारा लिखे गए पत्र में कहा गया कि राणा पूंजा को 'भीलू राणा' कहे जाने का अर्थ यह नहीं कि वह भील थे बल्कि यह उनके और भीलों के बीच के भरोसे और साहचर्य का प्रतीक है।
राजनीतिक पृष्ठभूमि और पुराने विवाद
यह विवाद कोई नया नहीं है। वर्षों पहले, जब राष्ट्रपति के.आर. नारायण द्वारा राणा पूंजा की एक और प्रतिमा का अनावरण होना था, तब राजपूत समुदाय के विरोध के चलते वह कार्यक्रम रद्द करना पड़ा था। उस समय भी विवाद का कारण प्रतिमा में राणा पूंजा को आदिवासी पोशाक में दिखाया जाना था।