सार

women day 2025 special story : रानी कर्णावती और हुमायूं की कहानी त्याग और शौर्य की मिसाल है। 8 मार्च को रानी ने मर्यादा के लिए जान दे दी। यह कहानी नारी शक्ति और सांस्कृतिक संबंधों का प्रतीक है।

जोधपुर. गौरव और वीरता से भरी राजस्थान की धरती पर इतने किस्से हैं कि साल का शायद ही कोई दिन ऐसा बीते जिससे संबधित कोई कथा -कहानी ना हो। आठ मार्च इंटननेशनल वीमन डे (International Women's Day) पर आपको ऐसी कहानी बताते हैं जो त्याग और शौर्य में बंधी है और मर्यादा के लिए जान की बाजी तक लगा दी गई। ये महारानी इतिहास के पन्नों में आज भी अमर है।

कहानी चित्तौड़ की रानी कर्णावती की…

भारतीय इतिहास में कई ऐसी गाथाएं हैं जो साहस, स्नेह और बलिदान की अद्वितीय मिसाल पेश करती हैं। चित्तौड़ की रानी कर्णावती (who is rani karnavati) और मुगल बादशाह हुमायूं  (mughal badshah humayun) की कहानी भी इन्हीं में से एक है, जो राजपूत वीरांगनाओं की वीरता और मुगलों की नैतिकता को दर्शाती है।

कौन थी रानी कर्णावती…

चित्तौड़ पर बहादुर शाह का आक्रमण सन् 1535 में गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने चित्तौड़गढ़ किले पर आक्रमण कर दिया। उस समय चित्तौड़ की रक्षा की जिम्मेदारी रानी कर्णावती पर थी, क्योंकि उनके पति राणा सांगा का निधन हो चुका था और उनके पुत्र विक्रमजीत सिंह उम्र में छोटे थे। जब बहादुर शाह की विशाल सेना ने चित्तौड़ को घेर लिया, तब रानी को यह समझ आ गया कि अकेले इस युद्ध को जीतना मुश्किल होगा।

रानी कर्णावती ने हुमायूं को भेजी थी राखी

  • रानी कर्णावती ने हुमायूं को भेजी राखी रानी कर्णावती ने तत्कालीन मुगल बादशाह हुमायूं को राखी भेजकर सहायता मांगी। यह एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि मुगलों और राजपूतों के बीच संबंध प्रायः संघर्षपूर्ण थे। लेकिन हुमायूं ने राखी को स्वीकार करते हुए रानी को अपनी बहन मान लिया और सहायता का वचन दिया।
  • हुमायूं की सेना और चित्तौड़ की त्रासदी उस समय हुमायूं बंगाल में सैन्य अभियान चला रहे थे, लेकिन जैसे ही उन्हें रानी कर्णावती की अपील मिली, वे अपनी मुहिम अधूरी छोड़कर बड़ी सेना के साथ चित्तौड़ के लिए रवाना हो गए। हालांकि, उस दौर में घोड़े और हाथियों पर इतनी दूरी तय करना आसान नहीं था और इसमें समय लगना स्वाभाविक था। जब तक हुमायूं चित्तौड़ पहुंचे, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

रानी कर्णावती ने जब वीरांगनाओं के साथ किया जौहर

रानी कर्णावती का जौहर और हुमायूं का प्रतिशोध 8 मार्च 1535 को रानी कर्णावती ने चित्तौड़ की अन्य वीरांगनाओं के साथ जौहर कर लिया। जब हुमायूं को इस त्रासदी की खबर मिली, तो उन्हें गहरा दुःख हुआ। इसके बाद हुमायूं ने बहादुर शाह पर हमला कर विजय प्राप्त की और चित्तौड़ का शासन रानी के पुत्र विक्रमजीत सिंह को सौंप दिया।

भारतीय इतिहास में नारी शक्ति की यह अनूठी मिसाल

रानी कर्णावती और हुमायूं की यह घटना भारतीय इतिहास में नारी शक्ति, सम्मान और सांस्कृतिक संबंधों की अनूठी मिसाल है। यह कहानी न केवल राजपूत वीरांगनाओं के साहस को दर्शाती है, बल्कि मुगलों की नैतिकता को भी उजागर करती है।