सार

लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ का गद्दी उत्सव उदयपुर में शुरू। परंपरा के अनुसार आयोजन, पर क्षत्रिय महासभा ने जताई आपत्ति। उत्सव पर विवाद!

उदयपुर. मेवाड़ के पूर्व राजपरिवार के सदस्य और  राणा सागा के वंशज लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ का गद्दी उत्सव बुधवार को सिटी पैलेस में पारंपरिक अनुष्ठानों के साथ पूरा हुआ। यह आयोजन उनके पिता अरविंद सिंह मेवाड़ के निधन के बाद परं परानुसार संपन्न हुआ। इस भव्य समारोह में प्राचीन राजपरिवार की रस्में और धार्मिक अनुष्ठान निभाईं गईं। मंत्रोच्चारण और शंखनाद के बीच लक्ष्यराज को उनके कुलगुरु डॉ. वागीश कुमार गोस्वामी ने  गद्दी पर बैठाया। इस दौरान तमाम साधु-संत और राववंश के सदस्य लोग मौजूद रहे।

राजस्थान में 350 वर्षों से चली आ रहीं गद्दी उत्सव की ये रस्में

इस उत्सव की शुरुआत सुबह 9:30 बजे हवन-पूजन से हुई, जिसे मेवाड़ के कुलगुरु द्वारा संपन्न कराया गया। यह परंपरा करीब 350 वर्षों से चली आ रही हैं और पूर्व राजपरिवार में इसे विशेष महत्व दिया जाता है। इस दौरान कुलगुरु समेत तमाम संत-महात्मा शामिल होते हैं।

गद्दी उत्सव की मुख्य रस्में इस प्रकार हैं

 दोपहर 3:15 बजे नोपति अश्व पूजन किया जाएगा। शाम 4:20 बजे लक्ष्यराज सिंह कैलाशपुरी स्थित श्री एकलिंगनाथ मंदिर के दर्शन करेंगे। शाम 7 बजे ऐतिहासिक हाथीपोल द्वार का पूजन किया जाएगा। रात 8:15 बजे सिटी पैलेस में रंग पलटाई की रस्म होगी। रात 9 बजे जगदीश मंदिर में भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए जाएंगे।

उदयपुर के सिटी पैलेस में भव्य तैयारियां और ड्रेस कोड

 इस आयोजन के लिए सिटी पैलेस को विशेष रूप से सजाया गया है और प्रतिष्ठित लोगों को आमंत्रण भेजा गया है। उत्सव में शामिल होने के लिए ड्रेस कोड भी निर्धारित किया गया है, जिसमें पुरुषों के लिए सफेद कुर्ता-पायजामा और महिलाओं के लिए सफेद पारंपरिक पोशाक अनिवार्य की गई है।

गद्दी उत्सव पर विवाद भी उठा हालांकि

 इस आयोजन को लेकर केंद्रीय मेवाड़ क्षत्रिय महासभा ने आपत्ति जताई है। महासभा के अध्यक्ष अशोक सिंह मेतवाला ने इसे एक निजी आयोजन करार दिया और कहा कि गद्दी उत्सव की परंपरा केवल पूर्वजों द्वारा निर्धारित उत्तराधिकारी के लिए होती है। उन्होंने इसे सामाजिक परंपराओं के विपरीत बताया।

लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ पिता की विरासत संभालेंगे…

लक्ष्यराज सिंह मेवाड़ अब अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी निभाएंगे। मेवाड़ राजपरिवार की परंपराएं न केवल ऐतिहासिक महत्व रखती हैं, बल्कि राजस्थान की संस्कृति और गौरवशाली अतीत का प्रतीक भी हैं।