सार
Rajasthan News: MP के श्योपुर जिले के निमोद गांव में स्थित दरगाह और शिव मंदिर सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल हैं। यहां ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार और भगवान शिव का मंदिर साथ स्थित हैं, जिनकी देखरेख मांगीलाल मीणा करते हैं। जानिए इसकी रोचक कहानी।
Rajasthan News: राजस्थान और मध्यप्रदेश की सांस्कृतिक विरासत हमेशा से अपनी अनूठी परंपराओं के लिए जानी जाती रही है। ऐसा ही एक धार्मिक स्थल मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले के निमोद गांव में स्थित है, जहां ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार और भगवान शिव का मंदिर साथ-साथ हैं। यह स्थान सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल बना हुआ है, जहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग एक साथ पूजा और इबादत करते हैं।
पीर की मजार और शिव मंदिर का अनूठा संगम
इस ऐतिहासिक स्थल की खासियत यह है कि यहां पीर की मजार और शिव मंदिर एक ही स्थान पर बने हुए हैं। यहां की सेवा मांगीलाल मीणा करते हैं, जो शिवलिंग की पूजा करने के साथ-साथ मजार पर चादर भी चढ़ाते हैं।
700 साल पुराना इतिहास
ऐसा माना जाता है कि ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने यहां तपस्या की थी और इसी कारण यहां मजार बनी। इस स्थल से जुड़ी ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार, शाहजहां के शासनकाल के दौरान यहां एक शिलालेख लगाया गया था, जिसमें श्योपुर के तत्कालीन राजा विट्ठल दास का नाम अंकित है। यह मंदिर और मजार दोनों 1648-1658 ईस्वी के दौरान बने।
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दरगाह और मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
स्थानीय लोगों के अनुसार, इस स्थल से जुड़ी कुछ मान्यताएं हैं:
- मकान निर्माण नहीं किया जाता: इस क्षेत्र में कोई भी पक्का मकान नहीं बनाता, जो लोग ऐसा करने की कोशिश करते हैं, उनके घरों में दरारें आ जाती हैं।
- घोड़े पर सवार होकर नहीं निकल सकते: इस स्थल के सामने से घोड़े पर बैठकर कोई नहीं गुजरता।
- मटका लेकर महिलाएं नहीं जातीं: कोई भी महिला इस स्थान के पास सिर पर मटका रखकर नहीं जाती।
- जमीन पर बैठना जरूरी: दरगाह में आने वाले हर व्यक्ति को जमीन पर बैठकर इबादत करनी होती है।
दरगाह और मंदिर में होते हैं खास आयोजन
जब राजस्थान के अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का उर्स मनाया जाता है, तब निमोद की इस दरगाह में भी उर्स का आयोजन होता है। यहां कव्वाली, चादर चढ़ाने और अन्य धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। वहीं, महाशिवरात्रि और प्रत्येक सोमवार को शिव मंदिर में विशेष पूजा होती है।
सांप्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल
700 सालों से यह स्थान हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बना हुआ है। मांगीलाल मीणा बताते हैं कि उनके पूर्वज भी इस स्थल की सेवा करते आए हैं और यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है। यह दरगाह और मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि यह समाज में सांप्रदायिक सद्भावना का संदेश भी देता है।
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