सार

राजस्थान के नागौर में महामाया माता मंदिर में बच्चों के रोगों के लिए प्रसाद नहीं, बल्कि लकड़ी का पालना चढ़ाया जाता है। माता के आशीर्वाद से बच्चे ठीक हो जाते हैं, यह मंदिर हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के लिए श्रद्धा का केंद्र है।

नागौर. राजस्थान के नागौर जिले के देवली गांव में स्थित महामाया माता का मंदिर एक अनोखी आस्था का केंद्र है। यह मंदिर नागौर-कुचामन रोड पर स्थित है और करीब 150 वर्षों पुराना है। महामाया माता को बच्चों की देवी के रूप में पूजा जाता है, जो बच्चों से संबंधित कई समस्याओं का समाधान करती हैं।

लकड़ी का पालना चढ़ाते ही होता चमत्कार

स्थानीय लोगों का मानना है कि महामाया माता बच्चों को होने वाले रोग, जैसे बोलने में तुतलापन, लकवा, या मुंह टेढ़ा हो जाने की समस्या को ठीक करती हैं। बच्चे के माता-पिता मंदिर में आकर माता से अरदास करते हैं और लकड़ी का पालना चढ़ाते हैं। माता का आशीर्वाद पाकर कई बच्चों ने स्पष्ट रूप से बोलना शुरू कर दिया है।

यह मंदिर पहले कच्ची मिट्टी से बना हुआ था

मुख्य पुजारी धन्नालाल के अनुसार, पहले यह मंदिर कच्ची मिट्टी से बना हुआ था। उनके पूर्वज इस मंदिर की सेवा करते आ रहे हैं। पुजारी धन्नालाल बताते हैं कि उनके दादा, पिता और परिवार के अन्य सदस्य भी माता की पूजा-अर्चना करते थे। अब वे स्वयं इस पवित्र कार्य को संभाल रहे हैं।

इन खास दिनों में होती है माता कि विशेष पूजा

मंदिर में हर माह की शुक्ल पक्ष की दूज, सप्तमी, दशमी और चौदस पर विशेष पूजा होती है। भादवा की पूर्णिमा पर यहां भव्य मेला लगता है, जिसमें दूर-दूर से भक्त माता के दर्शन के लिए आते हैं। माता को प्रसन्न करने के लिए पालने चढ़ाए जाते हैं, और जोत पर 21 बार घुमाने की परंपरा है।

मुस्लिम समाज के लोगों की भी मन्नत होती पूरी

मंदिर की एक खासियत यह भी है कि यहां केवल हिंदू ही नहीं, बल्कि मुस्लिम समाज के लोग भी अपने बच्चों की समस्याओं के समाधान के लिए आते हैं। वे जडूले उतारने और लकवा जैसी बीमारियों के लिए अरदास करते हैं। महामाया माता का यह मंदिर न केवल श्रद्धा का केंद्र है, बल्कि चमत्कारों और आस्था का जीवंत प्रतीक भी है।

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