muharram 2025 : झालावाड़ का बोहरा समाज मोहर्रम के दौरान 9 दिनों तक सभी व्यापारिक गतिविधियां बंद रखेगा। दुकानों के साथ-साथ ऑनलाइन व्यापार और सोशल मीडिया से भी दूरी बनाई जाएगी। यह निर्णय इमाम हुसैन की शहादत के गम में लिया गया है।

muharram 2025 : मोहर्रम का महीना आते ही बोहरा समाज शोक, आत्मचिंतन और आध्यात्मिक साधना में लीन हो जाता है। इस बार झालावाड़ के बोहरा समाज ने 27 जून से 5 जुलाई तक नौ दिनों तक स्वेच्छा से व्यापारिक गतिविधियों को पूरी तरह स्थगित रखने का निर्णय लिया है। यह निर्णय समाज के सर्वोच्च धार्मिक नेता सैय्यदना साहब के निर्देशानुसार लिया गया है, जिनका संदेश है कि इमाम हुसैन की शहादत के गम में पूरा समाज पूर्ण रूप से समर्पित भाव से जुड़ा रहे।

TV से लेकर मोबाइल और सोशल मीडिया तक नहीं चलाएंगे?

समाज के सचिव युसुफ लपाट ने जानकारी दी कि केवल दुकानें ही नहीं, बल्कि ऑनलाइन बिजनेस, मोबाइल, सोशल मीडिया, व्हाट्सएप जैसी डिजिटल गतिविधियों से भी समाजजन दूरी बनाए रखेंगे। समाज के कई सदस्य तो इस दौरान टीवी और मनोरंजन से भी पूर्ण परहेज़ करेंगे। बच्चों को भी मोहर्रम की भावना समझाते हुए नौ दिन स्कूल से विराम दिलाया गया है।

समाज ने दुकानों के सामने चिपका दिए नोटिस

समाज के व्यापारियों ने अपने प्रतिष्ठानों पर नोटिस चिपका दिए हैं, जिनमें ग्राहकों से क्षमा याचना करते हुए मोहर्रम के दिनों में दुकानें बंद रखने की जानकारी दी गई है। इसके साथ ही मोबाइल स्टेटस और पंपलेट्स के ज़रिए भी इस निर्णय की सूचना पहले ही साझा की जा चुकी है, ताकि किसी को असुविधा न हो।

मोहर्रम में क्या होगा खास?

प्रत्येक दिन सुबह समाज में वाज, धर्मोपदेश, नमाज और सामूहिक भोजन का आयोजन होगा। शाम को मजलिस और इमाम हुसैन की शहादत पर आधारित धार्मिक कार्यक्रम होंगे। पहले वर्षों में समाजजन आधे दिन तक ही संयम रखते थे, लेकिन इस बार पूरे नौ दिन पूरी निष्ठा के साथ मोहर्रम के शोक में लीन रहने का आह्वान किया गया है।

श्रद्धा और समर्पण से स्वीकारा यह फैसला

यह निर्णय पूरी तरह स्वैच्छिक है, लेकिन समाज के सभी वर्गों में इसे श्रद्धा और समर्पण से स्वीकार किया गया है। यह पहल न केवल धार्मिक आस्था की मिसाल है, बल्कि सामाजिक एकता और अनुशासन का भी प्रेरणादायक उदाहरण है।

क्या है मोहर्रम?

मोहर्रम के महीने में, शिया मुसलमान इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत पर शोक मनाते हैं। वे ताजिया निकालते हैं, जो इमाम हुसैन के मकबरे का प्रतीक है। कुछ लोग इस महीने में उपवास भी रखते हैं। कहा जाता है कि यह हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद दिलाता है। इमाम हुसैन पैगंबर मुहम्मद के छोटे नवासे थे और कर्बला की लड़ाई में शहीद हुए थे। उन्हीं के बलिदान के रूप में मोहर्रम मनाया जाता है।