सार
राजस्थान के जालौर में मौजूद मंदिर में होली के दिन इलोजी महाराज की पूजा संतान प्राप्ति और विवाह के लिए होती है। राजकुमार इलोजी ने आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया था। मान्यता है कि उनकी पूजा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
जालौर. होली के त्यौहार (Holi Festival) में अभी दो ही दिन शेष बचे हैं। राजस्थान ही नहीं बल्कि देशभर के अलग-अलग इलाकों में होली की अलग-अलग परंपराएं हैं। कहीं राख से होली खेली जाती है तो कहीं होली के दिन विशेष पूजा की जाती है। राजस्थान के जालौर (Jalore) में भी होली के दौरान लोग संतान प्राप्ति और कुंवारे लोग शादी की चाहत में इलोजी महाराज (iloji maharaj) की पूजा अर्चना करते हैं। होली के दिन इस मंदिर में लोगों की भारी भीड़ रहती है।
कौन थे इलोजी महाराज, होलिका से होने वाली थी शादी
- एक मान्यता है कि इलोजी महाराज एक राजकुमार थे। जिसकी शादी हिरण्यकश्य की बहन होलिका से फिक्स हुई। लेकिन विवाह के दिन ही होलिका ने प्रहलाद को जलाने की कोशिश की और खुद भी आग में जलकर भस्म हो गई। अपनी होने वाली पत्नी की मृत्यु से आहत होकर इलोजी भगवान ने भी आजीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया। वह इतने ज्यादा दुखी हुए कि उन्होंने अपने तन पर मिट्टी और राख लगा ली और सन्यासी जीवन अपना लिया।
- इलोजी महाराज को आनंद भैरू और मस्त मौला देवता के नाम से भी पहचाना जाता है। लोक कथाओं में इनका स्वभाव चंचल और मजाकिया बताया गया है। जो भक्तों को खुश रहने और जीवन का आनंद लेने की प्रेरणा देते हैं।
भगवान शिव ने संतान और शादी का दिया था वरदान
मान्यता है कि भगवान शिव के द्वारा इलोजी को वरदान दिया गया कि जो भी कुंवारे लड़के और लड़कियां तुम्हारी पूजा करेंगे, निसंतान महिलाएं पूजा करेगी तो उनकी हर मनोकामना पूरी होगी। यही एक कारण है की होली के दिन इलोजी महाराज की पूजा करने के लिए लोगों की भीड़ लगी रहती है।
जालौर शहर में बना है इलोजी महाराज का मंदिर
आपको बता दें कि जालौर शहर में वैसे तो इलोजी महाराज का मंदिर बना हुआ है ही। इसके अलावा कई ग्रामीण क्षेत्रों में भी महाराज के छोटे-छोटे मंदिर बनाए गए हैं। होली के दिन इन मंदिरों के बाहर युवा राजस्थानी गीत या पारंपरिक गीत गाते हुए भी नजर आते हैं।