सार

अजमेर के अढ़ाई दिन के झोपड़े में नमाज पढ़ने पर विवाद गहरा गया है। हिंदू और जैन संतों का दावा है कि यह पहले मंदिर था, और दीवारों पर हिंदू-जैन शैली के चिन्ह हैं। प्रशासन से मामले की जाँच की मांग की जा रही है।

अजमेर. राजस्थान का अजमेर जिला इन दिनों सुर्खियों में है। यहां ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे को लेकर लगातार बयानबाजी जारी है। इसी बीच अब अजमेर में अढ़ाई दिन के झोपड़े का नाम भी सुर्खियों में आया है। यहां विवाद नमाज को लेकर है।

अब जैन संतों ने जताया नमाज पढ़ने का विरोध

पिछले कई दिनों से यहां हिंदू और जैन संत नमाज पढ़ने का विरोध जाता रहे हैं। दावा किया जा रहे हैं कि यहां पर दीवारों और गर्भगृह में खंभों पर साफ-साफ हिंदू और जैन मंदिर शैली देखी जा सकती है। आपको बता दें कि साल की शुरुआत से ही यहां कई संत जा रहे हैं। इसके बाद उन्हें एक समुदाय विशेष के लोगों ने रोक भी दिया। इसके विरोध में देशभर के जैन समुदाय के लोगों ने प्रशासन के सामने आपत्ति भी दर्ज करवाई थी।

राजस्थान के जैन समाज ने सरकार के सामने रखी ये डिमांड

अजमेर नगर निगम के डिप्टी मेयर नीरज जैन ने भी मीडिया से कहा था कि यहां पहले जैन मंदिर था और संस्कृत विद्यालय भी था। इसका प्रमाण जैन महाराज सुनील सागर जी ने वहां पर विहार के दौरान बताया। मेयर के द्वारा राज्य और केंद्र सरकार से इसका सर्वेक्षण और इसे मौजूदा स्वरूप में लौटाने की मांग भी की गई थी। उस दौरान जैन के द्वारा यहाँ धार्मिक गतिविधि नहीं किए जाने की बात भी कही थी। साथ ही कहा गया कि यदि कब्जा करने की नियत से किसी समाज विशेष के द्वारा कुछ किया जाता है तो उस पर भी रोक लगनी चाहिए।

क्या है अढ़ाई दिन के झोपड़ा

इस अढ़ाई दिन के झोपड़े का निर्माण 1192 ईस्वी में अफगान सेनापति मोहम्मद गौरी के आदेश पर हुआ था। पहले यहां संस्कृत विद्यालय और मंदिर था जिन्हें तोड़कर बाद में मस्जिद में बदल दिया गया। यहां एक संगमरमर का शिलालेख है जिस पर इस बात का जिक्र है कि संस्कृत विद्यालय यहां पर था। वही इस मस्जिद में कुल 70 स्तंभ है जो मंदिरों के हैं और उन्हें ध्वस्त कर दिया गया।

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