सार
अजमेर (राजस्थान). अजमेर दरगाह को लेकर एक नया विवाद खड़ा हो गया है। दरगाह के दीवान ज़ैनुल आबेदीन अली खान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर अजमेर को राष्ट्रीय स्तर पर जैन तीर्थ स्थल घोषित करने की मांग की है। उनके इस बयान के बाद शहर में बहस छिड़ गई है। हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने दीवान के बयान का समर्थन करते हुए दावा किया कि यह साबित करता है कि अजमेर में पहले जैन मंदिर थे।
कोर्ट में चल रहा अजमेर दरगाह मामला
विष्णु गुप्ता ने अजमेर कोर्ट में एक याचिका दायर कर यह दावा किया है कि जिस स्थान पर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह स्थित है, वहां पहले संकट मोचन महादेव मंदिर था। उनका कहना है कि इस मंदिर को तोड़कर दरगाह का निर्माण किया गया था। यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है, और इसके ऐतिहासिक तथ्यों की जांच की जा रही है।
क्या अजमेर दरगाह में है जैन मंदिर?
अजमेर न केवल सूफी इस्लाम का महत्वपूर्ण केंद्र है, बल्कि जैन धर्म की ऐतिहासिक विरासत भी यहां गहराई से जुड़ी हुई है। यहां भगवान आदिनाथ और अन्य तीर्थंकरों से संबंधित कई प्राचीन स्थल मौजूद हैं। जैन समुदाय के अनुसार, अजमेर में कई महत्वपूर्ण जैन मंदिर और पुरातात्विक साक्ष्य हैं, जो इस क्षेत्र की प्राचीन धार्मिक पहचान को दर्शाते हैं।
दरगाह दीवान की मांग पर प्रतिक्रिया
दरगाह दीवान की मांग के बाद विभिन्न समुदायों से मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ आ रही हैं। कुछ लोग इसे धार्मिक सहिष्णुता और ऐतिहासिक पुनरावलोकन की दृष्टि से सही मान रहे हैं, जबकि कुछ का कहना है कि इससे धार्मिक टकराव की स्थिति पैदा हो सकती है।
सरकार और अदालत की भूमिका
अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि केंद्र सरकार दीवान की इस मांग पर क्या रुख अपनाती है और न्यायालय में चल रहे मुकदमे का क्या परिणाम निकलता है। अजमेर हमेशा से विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों का संगम रहा है, ऐसे में इस ऐतिहासिक शहर की विरासत को कैसे संरक्षित किया जाएगा, यह आने वाले समय में स्पष्ट होगा।