मुंबई पर एक नई स्टडी के अनुसार, बांग्लादेश से आए 70% अवैध प्रवासियों के पास वोटर कार्ड हैं। यह अवैध प्रवासन शहर के संसाधनों, स्वास्थ्य प्रणाली और नौकरियों पर भारी दबाव डाल रहा है। इससे जनसांख्यिकीय बदलाव भी हो रहे हैं।
चुनाव आयोग पूरे देश में वोटर लिस्ट का खास रिवीजन कर रहा है, जिससे कई राज्यों में लाखों फर्जी वोटरों के नाम लिस्ट से हटाए जा रहे हैं। अलग-अलग राज्यों में यह संख्या अलग है। देश छोड़कर आए और वोटर लिस्ट में जगह बना चुके कई लोगों की जानकारी सामने आ रही है। इसी बीच एक चौंकाने वाली बात सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक, अकेले मुंबई शहर में ही बांग्लादेश से अवैध रूप से आकर बसे 70 प्रतिशत लोगों के पास भारतीय वोटर कार्ड हैं।
भारत की कारोबारी और आर्थिक राजधानी मुंबई, देश के दूसरे राज्यों और विदेशों से आए हजारों अवैध प्रवासियों के लिए एक पनाहगाह बन गई है।
ऐसे में, 'मुंबई शहर पर प्रवासन का प्रभाव' नाम की एक नई स्टडी के अनुसार, बांग्लादेश और म्यांमार से आए बिना दस्तावेज़ वाले प्रवासियों की वजह से शहर की क्षमता पर खतरा मंडरा रहा है। मुंबई स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पब्लिक पॉलिसी की प्रोफेसर मेधा तापियावाला और गलगोटिया यूनिवर्सिटी के असिस्टेंट प्रोफेसर सौविक मोंडल ने जुलाई 2024 और जुलाई 2025 के बीच प्रवासियों की घनी आबादी वाले इलाकों में 3,000 से ज्यादा लोगों का सर्वे किया था। इस सर्वे के नतीजों से कई बातें सामने आई हैं।
मुंबई की 43% प्रवासी आबादी में, जिन प्रवासियों के पास दस्तावेज़ हैं, उन्होंने आर्थिक विकास में काफी योगदान दिया है। लेकिन अवैध प्रवासियों ने शहर के लिए कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। प्रवासियों की बढ़ती संख्या ने शहर के आवास, परिवहन और स्वास्थ्य सिस्टम पर काफी दबाव डाला है। मोंडल ने बताया कि जनसंख्या में वृद्धि का कारण जन्म दर को नहीं कहा जा सकता, बल्कि बिना दस्तावेज़ वाले प्रवासियों की आवाजाही इसका मुख्य कारण है। इस बात पर जोर देने के लिए, स्टडी में धार्मिक आंकड़ों का भी जिक्र किया गया है। जनगणना के अनुसार, 1951 में 90 प्रतिशत हिंदू आबादी 2011 में घटकर 65 प्रतिशत रह गई, जबकि इसी दौरान मुस्लिम आबादी में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई।
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बिना दस्तावेज़ वाले अवैध प्रवासियों में 67 प्रतिशत पुरुष और 33 प्रतिशत महिलाएं हैं। यह मुख्य रूप से मजदूरों की मांग के कारण हुआ प्रवासन है। इन अवैध प्रवासियों में से 96% की पहचान मुस्लिम के रूप में हुई है, और उनमें से 41.6% अनपढ़ हैं। ये वे लोग हैं जो अपना वीजा खत्म होने के बाद भी अपने देश नहीं लौटे और यहीं रह गए। सर्वे ने यह भी पुष्टि की है कि कुछ लोग अवैध रूप से सीमा पार करके आए हैं। रिसर्च के अनुसार, बिना दस्तावेज़ वाले ये अवैध प्रवासी ज्यादातर बंगाली बोलने वाले हैं और मुंबई के गोवंडी, कुर्ला, मानखुर्द, चीता कैंप, वर्सोवा और बांद्रा पूर्व के कुछ हिस्सों में घनी आबादी में बसे हैं। इन इलाकों में बुनियादी सुविधाएं बहुत खराब हैं। यहां हर कमरे में तीन लोग रहते हैं, जिससे बुजुर्गों और बच्चों में बीमारी फैलने का खतरा ज्यादा होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसलिए ये समूह स्वास्थ्य सेवा प्रणाली पर दबाव डालते हैं।
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मोंडल ने स्टडी में बताया कि यहां बुनियादी ढांचे के विकास के कारण शहर के मैंग्रोव जंगल काफी हद तक नष्ट हो गए हैं। इससे होने वाला पर्यावरणीय असंतुलन इन समूहों को बाढ़ के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाता है और भूमिगत प्रदूषण की संभावनाओं को बढ़ाता है। स्टडी के अनुसार, अवैध प्रवासियों का शहर पर बड़ा असर पड़ रहा है। बिना कौशल वाले अवैध प्रवासी मजदूर स्थानीय लोगों के लिए नौकरी के अवसर कम कर देते हैं, सार्वजनिक संस्थानों पर दबाव डालते हैं और अर्थव्यवस्था में कम योगदान देते हैं, जबकि कुशल मजदूर इसके विपरीत काम करते हैं। यह स्टडी रिपोर्ट कहती है कि मुंबई में मजदूरों की मांग अवैध प्रवासियों को ज्यादा आकर्षित करती है, जिनमें से ज्यादातर बिना कौशल वाले मजदूर होते हैं।
