- Home
- States
- Maharastra
- 7000 गांवों का चौंकाने वाला फैसला: अब विधवाएं नहीं तोड़ेंगी चूड़ियां! आखिर क्यों बदली सदियों पुरानी परंपरा?
7000 गांवों का चौंकाने वाला फैसला: अब विधवाएं नहीं तोड़ेंगी चूड़ियां! आखिर क्यों बदली सदियों पुरानी परंपरा?
महाराष्ट्र के 7,000 से अधिक गांवों ने विधवाओं के खिलाफ सदियों पुरानी भेदभावपूर्ण प्रथाओं को खत्म करने की घोषणा की। यह सामाजिक बदलाव अब पूरे राज्य में एक नई शुरुआत का संकेत है।
- FB
- TW
- Linkdin
)
अब विधवाओं को मिलेगा पूरा सम्मान, नहीं टूटेंगी चूड़ियां, नहीं उतरेगा मंगलसूत्र
महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों से एक ऐतिहासिक और प्रेरणादायक बदलाव की खबर सामने आई है। राज्य के 7,683 से अधिक गांवों ने विधवाओं (Widows) के साथ किए जाने वाले भेदभाव और अमानवीय परंपराओं को समाप्त करने का फैसला लिया है। सदियों से चली आ रही इन रीति-रिवाजों ने न केवल महिलाओं को मानसिक और सामाजिक पीड़ा दी, बल्कि उन्हें समाज से अलग-थलग भी कर दिया।
कहां से हुई शुरुआत?
इस बदलाव की शुरुआत 2022 में कोल्हापुर जिले के हेरवाड़ गांव से हुई। यहां ग्राम सभा ने एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित करते हुए ऐसी हर परंपरा पर रोक लगाई, जिसमें विधवाओं को चूड़ियां तोड़ने, मंगलसूत्र उतारने, सिंदूर मिटाने या रंगीन कपड़े ना पहनने जैसे रीति-रिवाजों के लिए मजबूर किया जाता था।
किन जिलों से शुरू हुआ ये अनोख लेकिन जरूरी अभियान?
इस प्रेरणादायक निर्णय ने एक अभियान का रूप ले लिया और धीरे-धीरे हजारों गांव इस आंदोलन से जुड़ते गए। महाराष्ट्र के विभिन्न जिलों जैसे सांगली, सतारा, कोल्हापुर, नासिक, बीड, उस्मानाबाद आदि में यह मुहिम तेजी से फैल गई।
अब क्या बदला है?
अब विधवाओं को त्योहारों में भाग लेने, रंगीन कपड़े पहनने और सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होने की अनुमति है। उन्हें विवाह समारोह में बुलाया जा रहा है, और कई गांवों में विधवाओं ने पुनर्विवाह भी किया है। चूड़ियां तोड़ना, मंगलसूत्र उतारना, या सिंदूर मिटाना अब अनिवार्य नहीं, बल्कि व्यक्तिगत निर्णय बन गया है।
क्यों है यह बदलाव इतना जरूरी?
भारत में आज भी कई जगहों पर विधवाओं को 'अशुभ' माना जाता है। उन्हें सामाजिक आयोजनों से दूर रखा जाता है, और उनका जीवन सामाजिक रूप से पूरी तरह बदल जाता है। यह बदलाव उन रीति-रिवाजों को चुनौती देता है जो महिला की पहचान को केवल उसके वैवाहिक रिश्ते से जोड़ते हैं।
कौन चला रहा है यह अभियान?
सामाजिक कार्यकर्ता प्रमोद झिंजाड़े इस अभियान के मुख्य सूत्रधार हैं। उन्होंने बताया कि “हर महिला को सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार है। पति की मृत्यु के बाद उसका जीवन खत्म नहीं होता, बल्कि नई शुरुआत होती है।” उन्होंने यह भी बताया कि अभी भी कई गांवों में बदलाव की जरूरत है, लेकिन इस पहल ने एक बड़ी सामाजिक क्रांति की नींव रख दी है।
अब तक का कितना पड़ा प्रभाव?
7,683 गांवों ने आधिकारिक प्रस्ताव पारित किए। हजारों महिलाओं ने पारंपरिक बंधनों से आज़ादी पाई। ग्राम पंचायतें अब विधवाओं के पुनर्विवाह को बढ़ावा दे रही हैं। सामाजिक जागरूकता बढ़ रही है और नई पीढ़ी इस बदलाव को अपना रही है
अब नहीं होता इन प्रथाओं का अनुपालन
नासिक जिले के मुसलगांव के सरपंच अनिल शिरसाट ने बताया कि उनका गांव 90 प्रतिशत साक्षर है और विधवाओं के खिलाफ बुरी प्रथाओं का पालन नहीं करता है। उनके यहां मंगलसूत्र उतारने, सिंदूर पोंछने और अन्य अनुष्ठान करने की प्रथा नहीं है। पिछले तीन सालों से उनके ग्राम पंचायत को मिलने वाले फंड का 15 प्रतिशत हर साल पांच जरूरतमंद विधवाओं की मदद के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।