Unique Marriage: बिना बोले शुरू हुई एक अनोखी प्रेम कहानी… इंस्टाग्राम पर हुई मुलाकात ने दो मूकबधिर दिलों को जोड़ दिया। जात-पात, शब्द और सीमाओं से परे, ये रिश्ता समाज के लिए बन गया मिसाल। जानिए कैसे खामोशी में बंध गई एक उम्रभर की डोर…

Mute Love Story: जब शब्द मौन हो जाएं और दिल की आवाज़ सुनी जाए — तब जन्म लेती है एक ऐसी प्रेम कहानी जो समाज की सीमाओं को तोड़ देती है। मध्य प्रदेश के धामनोद में हुई एक मूकबधिर जोड़े की अनोखी शादी ने ना सिर्फ भावनाओं की गहराई को दिखाया बल्कि इंसानियत, प्रेम और समर्पण की नई परिभाषा गढ़ दी।

जब इमोजी बन गईं दिल की ज़ुबान – इंस्टाग्राम पर हुई अनोखी शुरुआत

इंदौर निवासी प्रदीप यादव और धामनोद की शिवानी विश्वकर्मा, दोनों ही जन्म से मूकबधिर हैं। पहली बार एक-दूसरे से इंस्टाग्राम पर जुड़े। धीरे-धीरे इमोजी, टेक्स्ट और वीडियो कॉल्स के माध्यम से दोनों ने एक-दूसरे को समझना शुरू किया। शब्दों की जगह इशारों और भावों ने ली। ये डिजिटल दोस्ती जल्द ही गहरे जुड़ाव में बदल गई।

जाति की दीवार गिरी, रिश्तों ने जीत हासिल की

शिवानी अनुसूचित जाति से हैं और प्रदीप यादव समुदाय से आते हैं। इस प्रेम कहानी में सबसे सुंदर मोड़ तब आया जब दोनों ने अपने परिवारों से अपने रिश्ते की बात की। न कोई विरोध, न सामाजिक डर — परिजनों ने इस रिश्ते को खुले दिल से स्वीकारा और शादी के लिए हामी भर दी। यह विवाह सिर्फ दो व्यक्तियों का नहीं, दो संस्कृतियों और सोच का मिलन बन गया।

मौन में बसी मोहब्बत – जब शब्दों की नहीं, जज्बातों की ज़रूरत थी

शादी के लिए धामनोद के एक गार्डन को चुना गया, जहां पूरा आयोजन सादगी से हुआ। बैंड-बाजा या तेज संगीत की जगह वहां भावनाओं की गूंज थी। दोनों ने बिना बोले वचन लिए — लेकिन आंखों में वफादारी, भरोसा और अपनापन साफ दिखा। इस विवाह में मौन नहीं, भावनाओं ने संवाद किया।

पिता की आंखें नम, दिल गर्व से भरा

शादी के दौरान शिवानी के पिता अनिल विश्वकर्मा भावुक हो गए। उन्होंने कहा, "मेरी बेटी को ऐसा जीवनसाथी मिला है, जो उसे बिना कहे भी समझता है। यह हर पिता के लिए गर्व की बात है।" इस मौके पर उपस्थित हर शख्स की आंखें नम थीं लेकिन चेहरों पर मुस्कान थी।

समाज के लिए प्रेरणा – जब विशेष ज़रूरतें बनीं विशेष ताकत

यह विवाह इस बात की मिसाल है कि जब प्यार सच्चा हो, तो शारीरिक सीमाएं कोई मायने नहीं रखतीं। शिवानी और प्रदीप ने दिखा दिया कि समझ, भावनाएं और समर्पण किसी भी 'दिव्यांगता' से कहीं अधिक शक्तिशाली होते हैं। यह शादी समाज के लिए एक गहरी सीख है – प्रेम में न भाषा की ज़रूरत होती है, न जाति की।