सार
मध्य प्रदेश पुलिस खुद यातायात नियमों का उल्लंघन कर रही है। बिना नंबर प्लेट, बीमा और फिटनेस प्रमाण पत्र के वाहन चलाने पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं? जानें चौंकाने वाला खुलासा।
भोपाल। कानून का पालन करना हर नागरिक की जिम्मेदारी होती है, लेकिन जब कानून लागू करने वाले ही इसका उल्लंघन करने लगें, तो सवाल उठना लाज़मी है। मध्य प्रदेश पुलिस पर हाल ही में गंभीर आरोप लगे हैं कि वह बिना नंबर प्लेट, रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट और बीमा के सरकारी वाहन चला रही है।
आम नागरिकों के लिए सख्ती, लेकिन पुलिस के लिए छूट?
अगर कोई आम व्यक्ति बिना फिटनेस प्रमाण पत्र के वाहन चलाता है, तो उसे 2,000 से 5,000 रुपये तक का जुर्माना भरना पड़ता है, और दोबारा नियम तोड़ने पर यह राशि 10,000 रुपये तक पहुंच जाती है। लेकिन जिनके ऊपर इन नियमों को लागू करने की जिम्मेदारी है – वही इन्हें तोड़ रहे हैं।
ड्राइवर ने किए चौंकाने वाले खुलासे
38 साल से पुलिस वाहन चला रहे ड्राइवर किशोर कुमार ने खुलासा किया, "मैंने कभी भी हमारे वाहनों के लिए कागजात नहीं देखे। अधिकारी खुद कहते हैं कि इन गाड़ियों का बीमा नहीं होता, फिटनेस खराब हो जाती है और रखरखाव भी समय पर नहीं किया जाता।" हालांकि, मोटर वाहन अधिनियम के अनुसार केंद्र और राज्य सरकार के स्वामित्व वाले गैर-व्यावसायिक वाहनों के लिए बीमा अनिवार्य नहीं है, लेकिन सड़क पर सुरक्षित संचालन सुनिश्चित करना जरूरी है।
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खस्ताहाल पुलिस वाहन: न फिटनेस सर्टिफिकेट, न मेंटेनेंस!
पुलिस विभाग के इस्तेमाल में कई पुराने और खराब वाहन हैं, जिनकी हालत बेहद दयनीय है। दंगा नियंत्रण के लिए उपयोग किए जाने वाले वज्र वाहन की सीटें और डैशबोर्ड तक टूटे पड़े हैं, लेकिन फिर भी इन्हें सड़क पर चलाया जा रहा है।
वाहन उठाने वाली क्रेन का ही नहीं है फिटनेस प्रमाण पत्र
इसी तरह, ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों के वाहन उठाने वाली क्रेन खुद ही फिटनेस प्रमाण पत्र के बिना चल रही है। इसकी खिड़कियां बंद नहीं होतीं, दरवाजे ठीक से नहीं लगते, और इंजन की हालत भी खराब है। कांस्टेबल शिव कुमार ने कहा, "गाड़ी के कागजात नहीं हैं, फिटनेस को किसी तरह मैनेज करना पड़ता है।"
जब पुलिस वाहन से हुई मौत, तो मुआवजा कौन देगा?
सरकारी वाहनों का बीमा न होने की वजह से कई मामलों में पीड़ितों को मुआवज़ा पाने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है। 2019 में, कांस्टेबल बलजीत सिंह की पुलिस बाइक से हुए हादसे में शोभनाथ लोनी की मौत हो गई थी। लंबी सुनवाई के बाद मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण ने पुलिसकर्मी और राज्य के डीजीपी को 12.78 लाख रुपये मुआवज़ा देने का आदेश दिया।
पूर्व डीजीपी ने भी उठाए सवाल
हालांकि, मृतक के परिवार का कहना है कि अगर सरकारी वाहन का बीमा होता, तो इतनी जटिल कानूनी प्रक्रिया से गुजरना न पड़ता। इस मुद्दे पर पूर्व डीजीपी एससी त्रिपाठी ने सवाल उठाते हुए कहा, "अगर आम नागरिकों को अपने वाहनों का बीमा करवाना अनिवार्य है, तो पुलिस को इससे छूट क्यों?"
क्या सरकार अपने रुख पर करेगी पुनर्विचार?
पिछले साल ही राज्य में दर्जनों सड़क दुर्घटनाएं सरकारी वाहनों से हुईं, जिनमें पीड़ितों को लंबे समय तक न्याय नहीं मिला। सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों का मानना है कि अगर सरकार सभी वाहनों का बीमा करवाए और उनकी फिटनेस की निगरानी करे, तो सड़क हादसों में कमी आएगी।
अब कौन लेगा जिम्मेदारी?
भोपाल पुलिस कमिश्नर हरिनारायणचारी मिश्रा ने इस मामले पर कहा, "कोर्ट के आदेशों के अनुसार ही मुआवज़ा दिया जाता है। पुलिस वाहनों का राज्य स्तर पर बीमा नहीं कराया जाता, लेकिन फिटनेस से समझौता नहीं किया जाता।" हालांकि, वास्तविकता इसके विपरीत दिखती है। पुलिस खुद ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन कर रही है, लेकिन इस पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही। सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस विभाग खुद अपने नियमों का पालन करेगा, या फिर यह स्थिति यूं ही बनी रहेगी?
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