सार

Dhanteras 2022 Depdaan Vidhi: धनतेरस पर शाम के समय यमराज के निमित्त दीपक लगाने की परंपरा है। मान्यता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता और अन्य परेशानियां भी कम हो जाती हैं। कई ग्रंथों में भी इस परंपरा के बारे में बताया गया है।

उज्जैन. इस बार धनतेरस का पर्व 22 अक्टूबर, शनिवार को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान धन्वंतरि और धन के देवता कुबेर की पूजा मुख्य रूप से की जाती है। इसके अलावा शाम के समय यमराज के निमित्त दीपदान भी जरूर किया जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार, धनतेरस पर प्रदोष काल (शाम) में यमराज के निमित्त दीपदान करने से अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता। इस परंपरा से जुड़ी कई कथाएं भी प्रचलित हैं। आगे जानिए धनतेरस पर कैसे करें दीपदान, शुभ मुहूर्त व इससे जुड़ी कथा के बारे में… 

दीपदान के लिए शुभ मुहूर्त
रात 08.06 से 09.30 तक रहेगा।
(उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार)

इस आसान विधि से करें दीपदान…
- मिट्टी के एक बड़ा दीपक को पानी से अच्छी तरह साफ करके सूखा लें। इसके बाद रुई से दो लंबी बत्तियां बना लें। उन्हें दीपक में एक-दूसरे पर आड़ी इस प्रकार रखें कि दीपक के बाहर बत्तियों के चार मुहं दिखाई दें।
- अब इस दीपक को तिल के तेल से पूरा भर दें और उसमें थोड़े काले तिल भी डाल दें। इस दीपक की कुंकुम, चावल एवं फूल से पूजा करें। इसके बाद घर के बाहर दक्षिण दिशा में गेहूं की एक ढेरी बनाएं और नीचे लिखा मंत्र बोलते इस दीपक को उसके ऊपर रख दें-
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह।
त्रयोदश्यां दीपदनात् सूर्यज: प्रीयतामिति।।
- इसके बाद हाथ में फूल लें और नीचे लिखा मंत्र बोलते हुए यमदेव को दक्षिण दिशा में नमस्कार करें-
ऊं यमदेवाय नम:। नमस्कारं समर्पयामि।।
- अब ये फूल दीपक के पास छोड़ दें और हाथ में एक बताशा या मिठाई का पीस लें और ये मंत्र बोलते हुए उसे भी दीपक के पास रख दें-
ऊं यमदेवाय नम:। नैवेद्यं निवेदयामि।।
- इस प्रकार भोग लगाने के बाद हाथ में पानी लेकर आचमन के लिए ये मंत्र बोलते हुए दीपक के पास छोड़ दें-
ऊं यमदेवाय नम:। आचमनार्थे जलं समर्पयामि।
- एक बार फिर से यमदेव को ऊं यमदेवाय नम: कहते हुए दक्षिण दिशा में नमस्कार करें। इस प्रकार दीपदान करने से यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता।

धनतेरस पर क्यों करते हैं दीपदान?
प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि “क्या कभी तुम्हें किसी मनुष्य के प्राण लेते समय उस पर दया नहीं आई।” 
यमराज की बात सुनकर यमदूतों ने कहा कि “एक बार एक ऐसी घटना घटी थी, जिससे हमारा हृदय कांप उठा था। हेम नामक राजा का एक पुत्र था। ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि विवाह के चार दिन इसकी मृत्यु हो जाएगी। यह जानकर राजा ने बालक को गुप्त स्थान पर ब्रह्मचारी के रूप में रखकर बड़ा किया।”
आगे यमदूतों ने बताया कि “एक दिन महाराज हंस की युवा पुत्री ने उस युवक को देखा और मोहित होकर उससे गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन पूरा होते ही राजकुमार की मृत्यु हो गई। पति की मृत्यु देखकर उसकी पत्नी बिलख-बिलखकर रोने लगी। उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय भी कांप उठा।”
एक यमदूत ने यमराज से पूछा कि “क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है?” यमराज ने कहा कि “अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को धनतेरस पर पूजन और दीपदान विधिपूर्वक करना चाहिए। जहां यह पूजन होता है, वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता।”
तभी से धनतेरस पर यमराज के निमित्त दीपदान करने की परंपरा चली आ रही है।


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