Diwali 2025: दिवाली 5 दिनों तक चलने वाला त्योहार है। इस दौरान रोज एक अलग देवी-देवता की पूजा की जाती है। नेपाल में भी दिवाली पर्व मनाया जाता है। इस दौरान वहां कुत्तों की पूजा करने की परंपरा है, जिसे कुकुर तिहार के नाम से जाना जाता है।
Kukur Tihar Tradition In Nepal: दिवाली हिंदुओं का सबसे प्रमुख त्योहार है। 5 दिनों तक चलने वाले इस त्योहार में देवी लक्ष्मी के साथ-साथ भगवान धन्वंतरि, यमराज, श्रीगणेश, देवी सरस्वती सहित अन्य कईं देवी-देवताओं की पूजा की जाती है। इस पर्व से जुड़ी अनेक परंपरा भी हैं। भारत के पड़ोसी देश में भी दिवाली पर्व बहुत ही धूम-धाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस दौरान नेपाल में कुत्तों की पूजा भी की जाती है। नेपाल में इस परंपरा को कुकुर तिहार कहते हैं। आगे जानिए क्या है परंपरा और इससे जुड़ी रोचक बातें…
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क्या है कुकुर तिहार?
नेपाल में दिवाली उत्सव के दूसरे दिन यानी नरक चतुदर्शी पर कुत्तों की पूजा की जाती है। इस पूजा में सबसे पहले कुत्तों को कुमकुम से टीका लगाया जाता है, फूलों की माला पहनाई जाती है। चावल डालकर आशीर्वाद लिया जाता है। कुत्तों को उनकी पसंद का खाना दिया जाता है। इस परंपरा को कुकुर तिहार के नाम से जाना जाता है। ये पर्व एक तरह से कुत्तों की वफादारी को याद रखने के लिए मनाया जाता है।
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क्यों मनाते हैं कुकुर तिहार पर्व?
नेपाल में ये मान्यता है कि कुत्ते यमराज के दूत और संदेशवाहक हैं। यदि नरक चतुर्दशी पर कुत्तों की पूजा की जाए तो यमराज प्रसन्न होते हैं और उनके घर में किसी की अकाल मृत्यु का भय नहीं होता। कुत्ते भैरव का वाहन भी हैं। नेपाल में कालभैरव भगवान का विशाल और प्रसिद्ध मंदिर भी है। इसलिए भी नेपाल के लोग नरक चतुर्दशी पर कुत्तों की पूजा करते हैं।
क्या है कुत्तों से जुड़ी मान्यताएं?
शिवपुराण के अनुसार, यमराज के दो कुत्ते हैं श्याम और शबल, जो मृत्यु के बाद व्यक्ति को यमराज के पास तक ले जाते हैं। महाभारत में स्वयं यमराज ने कुत्ते का रूप लेकर पांडवों की परीक्षा ली थी। देवताओं की कुतिया का नाम सरमा है। इस तरह हिंदू धर्म ग्रंथों में भी कुत्तों का विशेष महत्व बताया गया है। कुत्ता इंसान का सबसे अच्छा दोस्त भी कहा जाता है।
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