Kab Hai Pongal 2025: दक्षिण भारत में कईं त्योहार विशेष रूप से मनाए जाते हैं, पोंगल भी इनमें से एक है। ये तमिलनाडु का प्रमुख त्योहार है। हर साल ये उत्सव मकर संक्रांति के मौके पर मनाया जाता है। तमिल भाषा में पोंगल का अर्थ है ऊफान या उबलना। पोंगल के दौरान लोग चावल को दूध में डालकर उबालते हैं। तमिलनाडु में इसी दिन से नए साल की शुरूआत भी मानी जाती है। इस पर्व से जुड़ी अनेक मान्यताएं और परंपराएं हैं, जो इसे और भी खास बनाती हैं। आगे जानिए इससे जुड़ी खास बातें…
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कितने दिनों तक मनाते हैं पोंगल?
पोंगल उत्सव मकर संक्रांति से शुरू होता है जो 4 दिनों तक मनाया जाता है। इस बार ये पर्व 14 से 17 जनवरी तक मनाया जाएगा। पोंगल उत्सव के पहले दिन को भोगी, दूसरे को सूर्य, तीसरे को मट्टू और चौथे को कानुम पोंगल कहते हैं। इन चारों दिनों में रोज अलग-अलग परंपराएं निभाई जाती हैं। इस उत्सव में लोग नाच-गाकर खुशियां मनाते हैं।
क्यों मनाते हैं पोंगल?
प्रचलित कथा के अनुसार, एक बार महादेव ने नंदी से कहा कि ‘ तुम धरती पर जाकर लोगों से कहो कि सभी को रोज तेल से स्नान करना चाहिए और महीने में सिर्फ एक दिन खाना खाना चाहिए।’ धरती तक आते-आते नंदी महादेश व संदेश भूल गए और उन्होंने कहा कि ‘मनुष्यों को रोज भोजन करना चाहिए और एक दिन तेल से नहाना चाहिए।’
नंदी की इस गलती से महादेव नाराज हो गए और नंदी को श्राप दिया कि ‘तुम्हें पृथ्वी पर रहकर हल जोतना पड़ेगा, साल में एक दिन पृथ्वीवासी तुम्हारी पूजा भी करेंगे।’ इसी श्राप के चलते पोंगल उत्सव मनाया जाता है, जिसमें बैलों की पूजा की जाती है।
क्या है जल्लीकट्टू?
पोंगल उत्सव के दिन जल्लीकट्टू खेल होता है। जल्लीकट्टू शब्द कालीकट्टू से बना है। काली का अर्थ है सिक्का और कट्टू का अर्थ है बांधना। पहले के समय में बैलों के सींग पर सिक्कों की एक पोटली बांधी जाती है और जो व्यक्ति उस बैल को काबू में कर लेता था, उसे वो पोटली ईनाम में दी जाती थी। आज ये ये खेल पोंगल की पहचान बन चुका है। इसमें बैल को काबू करने की परंपरा आज भी जारी है।
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