Nag Panchami 2025: महाभारत में एक ऐसे ऋषि का वर्णन मिलता है, जिनका नाम लेने से सांप नहीं काटते। इन्होंने ही राजा जनमेजय का नागदाह यज्ञ रूकवाया था। अन्य ग्रंथों में भी इन ऋषि के बारे में बताया गया है।

Nag Panchami Story: इस बार नाग पंचमी का पर्व 29 जुलाई, मंगलवार को मनाया जाएगा। महाभारत में नागों के जन्म के की रोचक कथा बताई गई है। महाभारत में ही एक ऐसे ऋषि के बारे में भी बताया गया है जिनका नाम लेने से सांप भाग खड़े होते हैं यानी अगर कोई सांप सामने आ जाए तो इन ऋषि का नाम लेने वो काटता नहीं है और चुपचाप अन्य स्थान पर चला जाता है। जानें कौन हैं ये ऋषि और क्या इस मान्यता से जुड़ी रोचक कथा…

राजा जनमेजय ने करवाया नागदाह यज्ञ

महाभारत के अनुसार, अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के काटने से हुई थी। जब ये बात उनके पुत्र जनमेजय को पता चली तो उन्होंने नाग जाति का अंत करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने नागदाह यज्ञ करवाया। इस यज्ञ की अग्नि में बड़े-बड़े सर्प आकर गिरने लगे। मृत्यु के भय से तक्षक नाग स्वर्ग में जाकर छिप गया लेकिन मंत्रों के आवाहन से वह यज्ञ की खींचा चले आने लगा। उसी समय वहां आस्तिक मुनि आए और उन्होंने राजा परीक्षित को प्रसन्न कर नागदाह यज्ञ रुकवा दिया।

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कौन थे आस्तिक मुनि?

महाभारत के अनुसार, नागों की बहन का नाम जरत्कारू था, जिन्हें हम मनसादेवी के नाम से जानते हैं। इनका विवाह जरत्कारू नाम के ही ऋषि से हुआ था। विवाह के कुछ समय बाद जरत्कारू ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम आस्तिक रखा गया। नागराज वासुकि ने ही इसका पालन-पोषण किया और ऋषि च्यवन ने इसे वेदों का ज्ञान दिया। इस तरह आस्तिक मुनि नाग जाति के भानजे थे।

इसलिए इनका नाम लेने से नहीं काटते सांप

जब आस्तिक मुनि ने सर्प यज्ञ रुकवाया तो नागों के राजा वासुकि ने उनसे वरदान मांगने को कहा। तब आस्तिक मुनि ने कहा कि ‘आज के बाद जो भी मेरा नाम लेगा या मेरा स्मरण करे, उसे कोई भी सर्प परेशान नहीं करेगा। साथ ही ये भी कहा कि-
आस्तीकस्य वच: श्रुत्वा य: सर्पो न निवर्तते।
शतधा भिद्यते मूर्घ्नि शिशंवृक्षफलं यथा।।
अर्थ- जो सर्प आस्तिक के वचन की शपथ सुनकर भी नहीं लौटेगा, उसके फन के शीशम के फल के समान सैकड़ों टुकड़े हो जाएंगे।


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