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Lord Narasimha Temples: ये हैं भगवान नृसिंह के 5 प्राचीन मंदिर, कहीं साल में 1 बार होते हैं दर्शन तो कोई मूर्ति तैरती है पानी पर

होली (Holi 2023) उत्सव भगवान विष्णु के चौथे अवतार नृसिंह से जुड़ा है। होली के मौके देश के प्रमुख नृसिंह मंदिरों में विशेष साज-सज्जा की जाती है और दर्शनों के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ती है। इस बार होलिका दहन 7 मार्च को किया जाएगा।

 

Manish Meharele | Published : Mar 05 2023, 08:23 AM
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ये हैं 5 प्रसिद्ध नृसिंह मंदिर...
Image Credit : google

ये हैं 5 प्रसिद्ध नृसिंह मंदिर...

भगवान विष्णु ने अन्याय को अंत करने के लिए कई अवतार लिए, नृसिंह अवतार भी इनमें से एक है। अपने भक्त प्रह्लाद को उसके पिता हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने ये अवतार लिया था। हमारे देश में भगवान नृसिंह के अनेक मंदिर है। इनमें से कुछ तो बहुत प्राचीन है और इनके कई मान्यताएं और परंपराएं भी जुड़ी हुई हैं। होली (Holi 2023) के मौके पर हम आपको भगवान नृसिंह के 5 प्राचीन मंदिरों के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं…
 

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यहं साल में एक बार होते हैं भगवान के दर्शन
Image Credit : google

यहं साल में एक बार होते हैं भगवान के दर्शन

आंध्रपदेश के विशाखापट्टनम के नजदीक सिंहाचल पर्वत पर भगवान नृसिंह का एक प्राचीन और विशाल मंदिर है। मान्यता है कि इस मंदिर की स्थापना स्वयं प्रह्लद ने की थी। इस मंदिर में भगवान भगवान नृसिंह लक्ष्मी के साथ हैं, लेकिन उनकी मूर्ति पर पूरे समय चंदन का लेप होता है। सिर्फ अक्षय तृतीया पर ही एक दिन के लिए ये लेप मूर्ति से हटाया जाता है, उसी दिन लोग असली मूर्ति के दर्शन कर पाते हैं। इस दिन यहां सबसे बड़ा उत्सव मनाया जाता है। 13वीं शताब्दी में इस मंदिर का जीर्णोद्धार यहां के राजाओं ने करवाया था।

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इस नृसिंह मंदिर से जुड़ी हैं कई मान्यताएं
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इस नृसिंह मंदिर से जुड़ी हैं कई मान्यताएं

बद्रीनाथ हिंदुओं के 4 धामों में से एक है। यहां जोशीमठ में भगवान नृसिंह का 1 हजार साल पुराना मंदिर है। मान्यता है कि इस मंदिर में आए बिना बद्रीनाथ के दर्शनों का फल प्राप्त नहीं होता। मंदिर में स्थापित भगवान नृसिंह की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से बनी है। मान्यता है कि ये मूर्ति स्वयं प्रकट हुई है। मूर्ति करीब 10 इंच की है और भगवान नृसिंह एक कमल पर विराजमान हैं | राजतरंगिणी ग्रंथ के अनुसार, 8वीं सदी में कश्मीर के राजा ललितादित्य मुक्तपीड ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार, जब भगवान नृसिंह की मूर्ति से उनका हाथ टूट कर गिर जाएगा, तब भगवान बद्रीनाथ के दर्शन नहीं हो पाएंगे। उस समय जोशीमठ के भविष्य बद्री मंदिर में भगवान बद्रीनाथ के दर्शन होंगे। 
 

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1 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है ये मंदिर
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1 हजार साल से भी ज्यादा पुराना है ये मंदिर

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भी भगवान नृसिंह का एक प्राचीन मंदिर है। पुरातत्व विभाग के अनुसार भगवान नृसिंह की ये प्रतिमा लगभग 1150 साल पुरानी है, जिसे भोसले वंश के राजा हरिहर वंशी ने स्थापित करवाया था। भगवान नृसिंह की ये प्रतिमा काले पत्थर से निर्मित है। मूर्ति की विशेषता है कि यह गर्मी में ठंडी और ठंड के दिनों में गर्म रहती है। ये मंदिर 28 खंभों पर टिका है और सभी खंभे एक ही पत्थर से बने हैं, जिन पर की गई आकर्षक नक्काशी किसी को भी हैरान कर सकती है।

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पानी पर तैरती है भगवान नृसिंह की ये प्रतिमा
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पानी पर तैरती है भगवान नृसिंह की ये प्रतिमा

मध्य प्रदेश के देवास जिले में हाटपीपल्या तहसील में एक प्राचीन नृसिंह मंदिर है। ये प्रतिमा एक साधु ने यहां के राज परिवार को दी थी और कहां था कि ये प्रतिमा पानी पर तैरती है। हर साल डोल ग्यारस के मौके पर इस पत्थर से निर्मित नृसिंह प्रतिमा को समीप बहने वाली नदी में डाला जाता है और आश्चर्य जनक रूप से ये प्रतिमा पानी पर तैरने लगती है। ऐसा सिर्फ 3 बार किया जाता है। पानी पर इस प्रतिमा का तैरना सुख-शांति का प्रतीक माना जाता है।
 

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नेपाल से लाई गई थी भगवान नृसिंह की ये प्रतिमा
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नेपाल से लाई गई थी भगवान नृसिंह की ये प्रतिमा

मध्य प्रदेश के राजगढ़ से करीब 19 किलोमीटर दूर नरसिंहगढ़ है। यहां कभी उमठ-परमार वंश का शासन था। उमठ राजाओं के कुलदेवता भगवान नृसिंह हैं। उन्होंने ही यहां भगवान नृसिंह का मंदिर बनवाया और इस क्षेत्र के नाम भी अपने कुलदेवता के नाम पर रखा। यहां मंदिर में स्थापित भगवान नृसिंह की प्रतिमा लगभग 350 साल पुरानी बताई जाती है, जो कि अष्टधातु से निर्मित है। कहते हैं कि ये प्रतिमा राजा स्वयं नेपाल जाकर लेकर आए थे।

 

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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें। आर्टिकल पर भरोसा करके अगर आप कुछ उपाय या अन्य कोई कार्य करना चाहते हैं तो इसके लिए आप स्वतः जिम्मेदार होंगे। हम इसके लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।


 


 
Manish Meharele
About the Author
Manish Meharele
मनीष जीव विज्ञान में बीएससी स्नातक कर चुके हैं। 19 वर्षों से मीडिया में काम कर रहे हैं। उन्होंने करियर की शुरुआत स्थानीय अखबार दैनिक अवंतिका से की थी। वह दैनिक भास्कर प्रिंट उज्जैन में वाणिज्य डेस्क प्रभारी रहे चुके हैं और 2010 से 2019 तक दैनिक भास्कर डिजिटल में धर्म डेस्क पर काम किया है। उन्हें महाभारत, रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों का अच्छा ज्ञान है। मौजूदा समय में मनीष एशियाने न्यूज हिंदी डिजिटल में कार्यरत हैं। Read More...
 
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