सार
Hindu wedding Ritual: हिंदू विवाह के अंतर्गत अनेक परंपराएं निभाई जाती है। वरमाला भी इन परंपराओं में से एक है। शादी से पहले दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे को फूलों का हार पहनाते हैं, इसे ही वरमाला कहा जाता है।
Dulha-Dulhan Kyo Pahnate Hai Varmala: हिंदू धर्म में विवाह सिर्फ एक संस्कार नहीं बल्कि परंपराओं का एक समूह है ऐसा इसलिए क्योंकि विवाह के दौरान अनेक परंपराओं का पालन किया जाता है। इन परंपराओं के पीछे कईं कारण हो सकते हैं जैसे धार्मिक, वैज्ञानिक या मनोवैज्ञानिक। बहुत से लोग इन परंपराओं में छिपे कारणों के बारे में नहीं जानते। ऐसी ही एक परंपरा है वरमाला। फेरों से पहले दूल्हा-दुल्हन सभी के सामने एक-दूसरे को फूलों की माला पहनाते हैं, इसे ही वरमाला कहा जाता है। आगे जानिए वरमाला की परंपरा से जुड़ी खास बातें…
क्यों निभाई जाती है वरमाला की परंपरा?
वरमाला की परंपरा के पीछे कोई भी धार्मिक या वैज्ञानिक कारण नहीं है बल्कि मनोवैज्ञानिक पक्ष है। उसके अनुसार, जब दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे को वरमाला पहनाते हैं तो ये इस बात का प्रतीक होता है कि वे दोनों अपनी मर्जी से वैवाहिक जीवन में कदम रखने के लिए तैयार है। साथ ही इससे ये भी साबित होता है कि वे दोनों एक-दूसरे को अपने लाइफ पार्टनर के रूप में पसंद करते हैं।
पुरातन समय से चली आ रही है ये परंपरा
वरमाला की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है। रामायण में भगवान श्रीराम ने जब शिव धनुष तोड़ा तो सीता ने उन्हें वरमाला पहनाकर अपना जीवनसाथी बनाना स्वीकार किया। महाभारत में भी द्रौपदी ने अर्जुन के गले में वरमाला डालकर अपना पति बनाना स्वीकार किया। इसके बाद ही विवाह से जुड़े अन्य रीति-रिवाज पूरे किए गए। वरमाला का अर्थ है दुल्हन द्वारा अपने योग्य वर का चयन।
वरमाला क्यों जरूरी?
जब दूल्हा-दुल्हन एक-दूसरे को वरमाला डालकर जीवनसाथी बनाना स्वीकार करते हैं, इसके बाद ही विवाह से जुड़ी अन्य परंपराएं पूरी की जाती है। वरमाला की रस्म पूरी होते ही घर-परिवार व अन्य परिजन दूल्हा-दुल्हन पर फूल बरसाकर उन्हें वैवाहिक नवजीवन की शुभकामना देते हैं। दरअसल वरमाला प्रेम और समर्पण का प्रतीक है, जो दूल्हा-दुल्हन के बीच के बंधन को और मजबूत करती है।
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