सार
उत्तरी कन्नड़ जिले के मुंडगोड के चिगल्ली स्थित दीपनथेश्वर मंदिर में 45 सालों से बिना तेल और बाती के जल रहे दीप बुझ गए हैं। पुजारी की मृत्यु के बाद मंदिर का दरवाजा खोला गया तो दीये बुझे हुए पाए गए, जिससे अनिष्ट की आशंका से ग्रामीण भयभीत हैं।
उत्तरी कन्नड़: पिछले 4 दशकों से, यानी 45 सालों से बिना तेल और बाती के जल रहे मंदिर के दीप बुझ गए हैं। उत्तर कन्नड़ जिले के मुंडगोड के चिगल्ली में स्थित दीपनथेश्वर मंदिर के दीप 45 सालों से बिना तेल और बाती के जल रहे थे। 1979 में दैवज्ञ शारदम्मा नामक महिला ने मंदिर में ये दीप जलाए थे। लगातार चार दशकों से बिना तेल डाले तीन दीप जल रहे थे। मान्यता है कि अगर ये दीप बुझ गए तो राज्य के शासकों के लिए अनिष्ट होगा। इसी के चलते राज्य के लिए कोई अपशकुन तो नहीं है, इस पर चर्चा शुरू हो गई है।
मंदिर में पूजा करने वाले पुजारी वेंकटेश की 15 दिन पहले मृत्यु हो गई थी। पुजारी की मृत्यु के सूतक के कारण मंदिर समिति ने मंदिर के दरवाजे बंद कर दिए थे। पुजारी वेंकटेश का श्राद्ध कार्य गोकरर्ण क्षेत्र में किया गया था। सूतक समाप्त होने के बाद जब मंदिर का दरवाजा खोला गया तो तीनों दीप बुझे हुए पाए गए। नागरत्न नामक व्यक्ति ने जब मंदिर का दरवाजा खोला तो दीप बुझे देखे। इसके बाद कितनी भी कोशिश करने पर दीप नहीं जला।
गाँव पर अनिष्ट की आशंका से ग्रामीणों ने मंदिर के दरवाजे बंद करवा दिए हैं। लोगों के दर्शन पर रोक लगाकर मंदिर के दरवाजे पर ताला लगा दिया गया है। चार-पाँच दिन बाद गुरुजनों से सलाह लेकर मंदिर का दरवाजा खोलने पर समिति विचार कर रही है।
फिलहाल राजेश गुरुजी की सलाह पर घी का दीप जलाने की बात चल रही है। स्थानीय लोगों ने बताया कि धर्मस्थल के धर्माधिकारी वीरेंद्र हेगड़े, पेजावर स्वामीजी, दलाई लामा, आनंद गुरुजी इस मंदिर में आ चुके हैं।
होन्नावर कर्की दैवज्ञ ब्राह्मण समाज के श्री ज्ञानेश्वर भारती स्वामीजी से मिलने का समिति ने फैसला किया है। साथ ही, धर्मस्थल के धर्माधिकारी वीरेंद्र हेगड़े से मिलकर सलाह लेने का भी निर्णय लिया गया है।
1979 में कल्मेश्वर मठ के प्रवचन में व्यस्त शारदा बाई दैवज्ञ ने यहाँ दीप जलाया था। कई दिनों तक बिना तेल के दीप जलता रहा तो परीक्षा के तौर पर दो और दीप जलाए गए। तब भी दोनों दीप बिना तेल के जलते रहे और चमत्कार हुआ। तब से लेकर अब तक कल्मेश्वर मठ के गुरुओं के आदेशानुसार दत्तात्रेय स्वरूप मानकर दीप की पूजा की जाती रही। 45 सालों तक बिना तेल के तीन दीप जलते रहे।