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Chamtkari Devi Mandir: कहीं सालों से धधक रही है अग्नि तो कहीं दी जाती है सात्विक बलि, इन 5 देवी मंदिरों से जुड़े हैं कईं चमत्कार

Chamtkari Devi Mandir: इन दिनों चैत्र नवरात्रि का पर्व चल रहा है। इन 9 दिनों में देवी के सभी मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। देवी के कुछ मंदिर काफी रहस्यमयी हैं। इनसे जुड़ी कुछ ऐसी बातें हैं, जिनके बारे में वैज्ञानिक भी आज तक कुछ जान नहीं पाए। 

Manish Meharele | Published : Mar 27 2023, 10:59 AM
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ये हैं देवी के चमत्करी मंदिर
Image Credit : Getty

ये हैं देवी के चमत्करी मंदिर

इस बार चैत्र नवरात्रि का पर्व 30 मार्च, गुरुवार तक मनाया जाएगा। इन नौ दिनों में हर कोई देवी को प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय करता है। (chaitra navratri 2023) देवी के मंदिरों में इन दिनों भक्तों की कतारें लगी रहती हैं। हमारे देश में देवी के अनेक मंदिर हैं, लेकिन इनमें से कुछ मंदिर चमत्कारी हैं। यानी इनसे कुछ ऐसी बातें जुड़ी हैं जिनका रहस्य आज तक वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाएं हैं। (Chamtkari Devi Mandir) आज हम आपको देवी के कुछ ऐसे ही चमत्कारी मंदिरों के बारे में बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं…

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पांडवों ने की थी इस मंदिर की खोज
Image Credit : google

पांडवों ने की थी इस मंदिर की खोज

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित ज्वालादेवी मंदिर (Jwaladevi Temple Himachal Pradesh) 52 शक्तिपीठों में से एक है। यहां देवी की किसी मूर्ति की नहीं बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही 9 ज्वालाओं की पूजा होती है। इन 9 ज्वालाओं को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर की खोज पांडवों ने की थी। मुगलकाल के दौरान कई बार इन ज्वालाओं को बुझाने की प्रयास किया गया, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। वैज्ञानिक भी इन ज्वालाओं को लेकर कई बार शोध कर चुका है, लेकिन भी आज तक इस चमत्कार के बारे मेंसमझ नहीं पाएं हैं।

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इस देवी मंदिर में दी जाती है पशुओं की बलि
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इस देवी मंदिर में दी जाती है पशुओं की बलि

असम राज्य के गुवाहाटी के निकट स्थित है कामाख्या मंदिर (Kamakhya Temple Guwahati)। ये मंदिर भी 52 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर को सिद्ध तंत्र पीठ माना जाता है। यहां दूर-दूर से भक्त तंत्र साधना करने आते हैं। यहां देवी को पशुओं की बलि भी दी जाती है। यहां देवी की योनी की पूजा की जाती है। साल में एक बार यहां मेले का आयोजन होता है, उस दौरान मंदिर बंद कर दिया जाता है। मान्यता है कि ये समय माता के मासिक धर्म का होता है। मंदिर बंद करने से पहले एक निश्चित स्थान पर सफेद कपड़ा रखा जाता है जो बाद में चमत्कारी रूप से लाल हो जाता है। इस लाल कपड़े को भी भक्तों को प्रसाद के रूप में दिया जाता है। सफेद कपड़ा अपने आप ही लाल कैसे हो जाता है, ये आज भी वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय है।

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इसे कहते हैं चूहों वाला मंदिर
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इसे कहते हैं चूहों वाला मंदिर

राजस्थान के बीकानेर से लगभग 30 किमी दूर स्थित है करणी माता मंदिर (Karni Mata Temple Bikaner) । इस 'चूहों वाली माता' या 'चूहों वाला मंदिर' भी कहते हैं। इसका कारण है कि इस मंदिर में 20 हजार से ज्यादा चूहे रहते हैं। इन्हें देवी का भक्त कहा जाता है। मंदिर में आने वाले भक्तों को चूहों का जूठा किया हुआ प्रसाद ही दिया जाता है, लेकिन खास बात ये है कि चूहों का जूठा प्रसाद खाने से आज तक कोई भी भक्त बीमार नहीं हुआ। ये चूहें यहां कैसे आए और ये इसी स्थान पर क्यों रहते हैं, ये रहस्य आज तक कोई भी समझ नहीं पाया। दूर-दूर से भक्त यहां माता के दर्शन करने आते हैं और इन चूहों को देखकर आश्चर्य चकित रह जाते हैं।

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यहां माता करती हैं अग्नि स्नान
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यहां माता करती हैं अग्नि स्नान

राजस्थान के उदयपुर शहर के 60 किमी दूर अरावली की पहाड़ियों पर स्थित है ईडाणा माता मंदिर (Idana Mata Temple Udaipur)। इस मंदिर की न तो कोई छत है और न ही दीवारें। एक मंदिर एकदम खुले चौक में स्थित है। मंदिर का ये नाम उदयपुर मेवल की महारानी के नाम से प्रसिद्ध हुआ है। स्थानीय लोग बताते हैं कि इस मंदिर में महीने में 2-3 बार अपने आप ही अग्नि प्रज्जवलित हो जाती है। इस अग्नि में माता की मूर्ति और श्रृंगार को छोड़कर सभी कुछ भस्म हो जाता है। कहते हैं कि माता स्वयं अग्नि स्नान करती हैं। ये अग्नि अपने आप कैसे जल उठती है, इसका रहस्य आज तक कोई नहीं लगा पाया।

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इसे मानते हैं सबसे पुराना देवी मंदिर
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इसे मानते हैं सबसे पुराना देवी मंदिर

बिहार के कैमूर जिले में स्थित है मुंडेश्वरी माता मंदिर (Mundeshwari Mata Temple Kaimur)। इसे भारत का सबसे पुराना देवी मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर परिसर में स्थित शिलालेखों से इस मंदिर की ऐतिहासिकता प्रमाणित होती है। यहां लगभग 1900 सालों से लगातार पूजा हो रही है। इस मंदिर का वर्णन कनिंघम ने भी अपनी पुस्तक में किया है। इस मंदिर में सात्विक बलि देने की प्रथा है। यानी बलि देते समय बकरे पर पवित्र जल छिड़का जाता है, जिससे बकरा थोड़ी देर के लिए बेहोश हो जाता है और कुछ देर बाद होश में आ जाता है। ऐसा चमत्कार कैसे होता है, ये भी वैज्ञानिकों के लिए एक रहस्य है।



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Disclaimer : इस आर्टिकल में जो भी जानकारी दी गई है, वो ज्योतिषियों, पंचांग, धर्म ग्रंथों और मान्यताओं पर आधारित हैं। इन जानकारियों को आप तक पहुंचाने का हम सिर्फ एक माध्यम हैं। यूजर्स से निवेदन है कि वो इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें। आर्टिकल पर भरोसा करके अगर आप कुछ उपाय या अन्य कोई कार्य करना चाहते हैं तो इसके लिए आप स्वतः जिम्मेदार होंगे। हम इसके लिए उत्तरदायी नहीं होंगे।

Manish Meharele
About the Author
Manish Meharele
मनीष जीव विज्ञान में बीएससी स्नातक कर चुके हैं। 19 वर्षों से मीडिया में काम कर रहे हैं। उन्होंने करियर की शुरुआत स्थानीय अखबार दैनिक अवंतिका से की थी। वह दैनिक भास्कर प्रिंट उज्जैन में वाणिज्य डेस्क प्रभारी रहे चुके हैं और 2010 से 2019 तक दैनिक भास्कर डिजिटल में धर्म डेस्क पर काम किया है। उन्हें महाभारत, रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों का अच्छा ज्ञान है। मौजूदा समय में मनीष एशियाने न्यूज हिंदी डिजिटल में कार्यरत हैं। Read More...
चैत्र नवरात्रि
 
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