सार
Kurma Jayanti Details In Hindi: भगवान विष्णु ने देवताओं की सहायता के लिए कछुए का अवतार लिया था। इसे भगवान विष्णु का कूर्म अवतार कहा जाता ह। भगवान ने ये अवतार समुद्र मंथन के दौरान लिया था।
Kurma Jayanti Kab Hai: वैशाख मास की पूर्णिमा पर कूर्म जयंती का पर्व मनाया जाता है। कूर्म जयंती भगवान विष्णु के कच्छप अवतार से संबंधित है। कच्छप और कूर्म का अर्थ है कछुआ। इस अवतार में भगवान विष्णु ने कछुए का रूप लेकर समुद्र मंथन में देवताओं की सहायता की थी। इस बार ये पर्व 12 मई, सोमवार को मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के कूर्म अवतार की पूजा विशेष रूप से की जाती है। जानें कूर्म जयंती पर कैसे करें पूजा, मंत्र और कथा सहित पूरी डिटेल…
कूर्म जयंती पूजा मुहूर्त (Kurma Jayanti Muhurat)
कूर्म जयंती का पूजा शाम को किया जाता है। इसके लिए शुभ मुहूर्त शाम 04 बजकर 21 मिनिट से शुरू होगा जो 07 बजकर 03 मिनिट तक रहेगा। यानी पूजा के लिए 2 घटे 42 मिनिट का समय मिलेगा।
कूर्म जयंती पूजा विधि (Kurma Jayanti Puja Vidhi)
- 12 मई, सोमवार की सुबह जल्दी उठकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। घर में जहां आप पूजा करना चाहते हैं, उस स्थान को अच्छे से साफ करें और गंगा जल या गौमूत्र छिड़कर उसे पवित्र करें।
- पूजा स्थान पर लकड़ी का एक पटिया रखकर इसके ऊपर तांबे के कलश में पानी, दूध, तिल, गुड़ फूल और चावल मिलाकर स्थापित करें। पास में भगवान कूर्म का चित्र या प्रतिमा स्थापित करें।
- सबसे पहले भगवान को कुमकुम से तिलक लगाएं फिर दीपक जलाएं। सिंदूर और लाल फूल आदि चढ़ाएं। अबीर, गुलाल, चावल, आदि चीजें एक-एक करके भगवान को चढ़ाते रहें।
- पूजा करते समय ऊं आं ह्रीं क्रों कूर्मासनाय नम: मंत्र का जाप करें। अंत में भगवान की आरती करें। इस तरह भगवान कूर्म की पूजा करने से आपके घर में सख-समृद्धि बनी रहेगी।
भगवान कूर्म की आरती
ऊं जय कूर्मदेव, कूर्मदेव
ऊं जय कूर्मदेव, कूर्मदेव
जग में नाम तुम्हारा है,
जग में नाम तुम्हारा है,
विश्व का भार तुम्हारा है,
विश्व का भार तुम्हारा है,
ऊं जय कूर्मदेव, कूर्मदेव
तुम हो विष्णु के अवतार,
तुम हो विष्णु के अवतार,
सागर मंथन में थे,
सागर मंथन में थे,
मंदराचल को संभाला है,
मंदराचल को संभाला है,
ऊं जय कूर्मदेव, कूर्मदेव
कछुए रूप में तुमने,
कछुए रूप में तुमने,
पृथ्वी को स्थिर रखा है,
पृथ्वी को स्थिर रखा है,
जग की रक्षा तुम्हारी है,
जग की रक्षा तुम्हारी है,
ऊं जय कूर्मदेव, कूर्मदेव
तुम हो ज्ञान और शक्ति के,
तुम हो ज्ञान और शक्ति के,
स्रोत तुम हो जग में,
स्रोत तुम हो जग में,
भक्ति और प्रेम तुम्हारा है,
भक्ति और प्रेम तुम्हारा है,
ऊं जय कूर्मदेव, कूर्मदेव
हे कूर्मदेव, कृपा करना,
हे कूर्मदेव, कृपा करना,
हम पर अपनी दृष्टि रखना,
हम पर अपनी दृष्टि रखना,
ऊं जय कूर्मदेव, कूर्मदेव
ऊं जय कूर्मदेव, कूर्मदेव
कूर्म अवतार की कथा (Kurma Avtar Ki Katha)
धर्म ग्रंथों के अनुसार, जब दैत्यों और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो मंदराचल पर्वत को मथानी और नागराज वासुकि को नेती यानी रस्सी बनाया गया। जब समुद्र मंथन शुरू हुआ तो मदरांचल पर्वत समुद्र में डूबने लगा। तब भगवान विष्णु ने विशाल कूर्म (कछुए) का अवतार लिया और मदरांचल पर्वत को अपनी पीठ पर स्थित कर लिया। ऐसा होने से मदरांचल पर्वत नेती की सहायता से तेजी से घूमने लगा और समुद्र मंथन का कार्य पूरा हो सका।
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