Nirjala Ekadashi Vrat Katha: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। इस बार निर्जला एकादशी का व्रत 6 जून, शुक्रवार को किया जाएगा। ये साल की सबसे बड़ी एकादशी मानी जाती है। इसका महत्व अनेक धर्म ग्रंथों में बताया गया है।
Story Of Nirjala Ekadashi: ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहते हैं। इस बार ये एकादशी व्रत 6 जून, शुक्रवार को है। इसे साल की सबसे बड़ी एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, जो व्यक्ति निर्जला एकादशी का व्रत करता है, उसे साल भर की सभी 24 एकादशी व्रत करने का फल मिलता है। निर्जला एकादशी पर कथा भी जरूर सुननी चाहिए, तभी व्रत का पूरा फल मिलता है। आगे जानिए निर्जला एकादशी का कथा…
निर्जला एकादशी की कथा (Nirjala Ekadashi Ki Katha Hindi Mai)
महाभारत के अनुसार, एक बार महर्षि वेदव्यास हस्तिनापुर आए और उन्होंने पांडवों को एकादशी तिथि का महत्व बताया और व्रत करने को कहा। सभी पांडव एकादशी व्रत करने के तैयार हो गए। तब भीम ने महर्षि व्यास से कहा कि ‘हे गुरुदेव, मेरे पेट में जो अग्नि है वो निरंतर जलती रहती है, उसे शांत करने के लिए मुझे निरंतर कुछ खाना पड़ता है, ऐसी स्थिति में मैं कैसे इस पुण्य व्रत का फल प्राप्त कर सकूंगा।’
भीम की बात सुनकर महर्षि वेदव्यास ने कहा कि ‘पांडु पुत्र भीम यदि कोई व्यक्ति पूरे साल एकादशी व्रत न कर पाए और सिर्फ ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे निर्जला कहते हैं, उसका व्रत करे तो उसे भी साल भर की एकादशी व्रत करने का फल मिलता है। इसलिए तुम सिर्फ निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकदशी व्रत का फल प्राप्त कर सकते हो।’
महर्षि वेदव्यास ने कहा कि ‘ ज्येष्ठ मास में भीषण गर्मी होती है, इस समय बिना पानी पिए व्रत करना बहुत ही कठिन होता है। यह व्रत मन को संयम सिखाता है और शरीर को नई ऊर्जा देता है। इसलिए इसे सबसे कठिन एकादशी व्रत भी कहा जाता है।’ भीम ने महर्षि वेदव्यास की बात मानकर निर्जला एकादशी का विधि-विधान से व्रत किया। भीमसन द्वारा इस व्रत को करने से ही इसका एक नाम भीमसेनी एकादशी पड़ा।
जो भी निर्जला एकादशी का व्रत करता है, उसे ये कथा जरूर सुननी चाहिए, तभी इस व्रत का संपूर्ण फल प्राप्त होता है।
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