Mohini Ekadashi 2025: पंचांग के अनुसार, एक साल में कुल 24 एकादशी आती है। इन सभी का नाम और महत्व अलग-अलग है। इनमें से वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोहिनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी का महत्व अनेक धर्म ग्रंथों में बताया गया है। ये एकादशी भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार से संबंधित है। इस बार मोहिनी एकादशी पर कई शुभ योग भी बन रहे हैं, जिसके चलते इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है। आगे जानिए कब है मोहिनी एकादशी, इसकी पूजा विधि, शुभ मुहूर्त, मंत्र, आदि की पूरी डिटेल…

कब है मोहिनी एकादशी 2025?

पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 07 मई, बुधवार की सुबह 10 बजकर 20 मिनिट से शुरू होगी, जो 08 मई, गुरुवार की दोपहर 12 बजकर 29 मिनिट तक रहेगी। चूंकि एकादशी तिथि का सूर्योदय 8 मई, गुरुवार को होगा, इसलिए इसी दिन मोहिनी एकादशी का व्रत किया जाएगा। इस दिन सूर्य और बुध मेष राशि में रहेंगे, जिससे बुधादित्य नाम का शुभ योग बनेंगा।

मोहिनी एकादशी 2025 शुभ मुहूर्त

- सुबह 10:45 से दोपहर 12:23 तक
- सुबह 11:57 से दोपहर 12:49 तक (अभिजीत मुहूर्त)
- दोपहर 12:23 से 02:00 तक
- दोपहर 02:00 से 03:38 तक

मोहिनी एकादशी व्रत-पूजा विधि

- मोहिनी एकादशी से एक दिन पहले यानी 7 मई, बुधवार की शाम को सात्विक भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- अगली सुबह यानी 8 मई, बुधवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें व्रत-पूजा का संकल्प लें।
- दिन भर व्रत के नियमों का पालन करें। यानी कम बोलें, किसी की बुराई न करें। एक समय फलाहार कर सकते हैं।
- घर का कोई हिस्सा गंगाजल या गौमूत्र छिड़ककर पवित्र करें। यहां एक लकड़ी के पटिए पर भगवान विष्णु का चित्र स्थापित करें।
- पटिए के ऊपर ही पानी से भरा कलश रखें। भगवान को कुमकुम का तिलक लगाएं और फूल चढ़ाएं।
- इसके बाद कलश की पूजा करें। इसके मुख पर नारियल रखें और मौली बांधे साथ ही फूल आदि भी चढ़ाएं।
- शुद्ध घी का दीपक जलाएं और अबीर, गुलाल, रोली, कुंकुम आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें।
- पूजा के दौरान ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप मन ही मन करते रहें। सबसे अंत में भोग लगाएं।
- पूजा के बाद आरती करें। रात्रि में सोए नहीं, भजन-कीर्तन करें। अन्य लोगों को भी भजन के लिए आमंत्रित करें।
- अगले दिन यानी 9 मई, शुक्रवार को ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और दान-दक्षिणा देकर विदा करें।
- ब्राह्मणों के जाने के बाद स्वयं भोजन करें। इस तरह पारणा करने के बाद ही व्रत का संपूर्ण फल मिलता है।


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