सार

कहते हैं कि हौसला हाथों में नहीं, दिमाग में होता है। दुनिया में कई ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने हाथ न होते हुए भी आम लोगों से कहीं ज्यादा बेहतर काम करके दिखाया। सीकर के रहने वाले भरत सिंह शेखावत भी ऐसे ही लोगों में शुमार हैं। ये पैरा एथलीट हैं। आज लोग इन्हें अपना आदर्श मानते हैं।

सीकर, राजस्थान. किस्मत की लकीरें हाथों में नहीं, आदमी के अंदर होती हैं। जिनके हाथ नहीं होते, वे भी अपनी किस्मत खुद बनाते हैं। दुनिया में कई ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने हाथ न होते हुए भी आम लोगों से कहीं ज्यादा बेहतर काम करके दिखाया। सीकर के रहने वाले भरत सिंह शेखावत भी ऐसे ही लोगों में शुमार हैं। ये पैरा एथलीट हैं। आज लोग इन्हें अपना आदर्श मानते हैं। भरत सिंह जब 6 साल के थे, तब एक भयंकर हादसे का शिकार हो गए थे। वे हाईटेंशन लाइन की चपेट में आकर मरते-मरते बचे थे। उनके दोनों हाथ खराब हो गए थे, इसलिए कंधे से काटने पड़े। करीब 2 साल तक बिस्तर पर पड़े रहे। मां-बाप को लगने लगा था कि उनके बेटे का भविष्य शायद ही अच्छा रहे। लेकिन भरत ने बिस्तर से उठकर एक मिसाल पेश की।


पैरों को बनाया अपनी ताकत
भरत ने धीरे-धीरे अपने पैरों को हाथों के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू किया। उनके पिता तेज सिंह बताते हैं कि भरत स्कूल जाने की जिद करने लगा। पहले तो उन्हें लगा कि वो स्कूल में कैसे पढ़ेगा? लेकिन उसके हठ के आगे वे झुक गए और उसे स्कूल लेकर गए। भरत की काबिलियत का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि उन्होंने 8वीं बोर्ड में दूसरा स्थान हासिल किया। पिछले दिनों भरत का चयन कृषि पर्यवेक्षक के पद पर हुआ। भरत बताते हैं कि राजस्थान एग्री क्लासेज के निदेशक रामनारायण ने तीन साल तक उन्हें फ्री में कोचिंग दी। भरत आज पैरों से मोबाइल, कम्प्यूटर आदि सब चला लेते हैं।