सार

कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games) के ट्राइथलॉन में डेंब्यू करने वाली प्रज्ञा मोहन सभी बाधाओं से जूझते हुए भारत को मेडल दिलाने की राह पर हैं। प्रज्ञा ने जिन चुनौतियों का सामना किया है, उसे जानकार कोई भी हैरान रह जाएगा।

Commonwealth Games. कॉमनवेल्थ गेम्स के पहले दिन ट्राइथलॉन में भारतीय टीम का नेतृत्व करने वाली प्रज्ञा मोहन की स्टोरी बहुत प्रेरक है। अभी तक 5 बार दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। 2 सर्जरी हुई है और कलाई व पैर में धातु की छड़ें पड़ी हैं। इसके बावजूद प्रज्ञा मोहन सीडब्ल्यूजी ट्राइथलॉन में भारत के लिए मेडल की उम्मीद हैं। उनकी दुश्वारियां इतनी ही नहीं हैं। जहां वे प्रैक्टिस करती हैं, वह सड़क भी एकदम उबड़-खाबड़ है। कोई कोच भी नहीं, जो उन्हें प्रशिक्षित कर सके फिर भी प्रज्ञा के हौंसले कभी कम नहीं हुए।

5 साल से कर रही हैं प्रैक्टिस
पिछले 5 वर्षों से प्रज्ञा मोहन अहमदाबाद में रोजाना सूरज निकलने से पहले उठ जाती हैं। 27 वर्षीया खिलाड़ी ने प्रशिक्षण पर कंपीटीशन के दौरान 5 बार एक्सिडेंट का सामना किया है। हालांकि उन्होंने 6 महीने ऑस्ट्रेलिया व स्पेन में भी प्रशिक्षण लिया है। प्रज्ञा के साथ भारत के चार सदस्य आदर्श एमएस, विश्वनाथ यादव और संजना जोशी भी पदक की दौड़ में हैं। ये प्रतियोगी क्रमशः तैराकी, साइकिलिंग और दौड़ में देश की प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जिसमें अभी तक भारत ने मेडल नहीं जीता है। लेकिन सबका ध्यान सिर्फ प्रज्ञा पर होगा जो राष्ट्रीय और दक्षिण एशियाई चैंपियन हैं। वे ट्रायथलॉन विश्व कप में भाग लेने वाली एकमात्र भारतीय हैं। प्रज्ञा के पिता प्रताप कहते हैं कि हमें पता था कि खेल में करियर बनाने के लिए उनमें क्षमता है। लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा था कि वे ट्राइथलॉन में हिस्सा लेंगी।

पहले तैराक बनना चाहती थीं
प्रज्ञा पहले तैराकी को चुनने के बारे में सोच रहीं थीं। प्रज्ञा ने आठ साल की उम्र में प्रतिस्पर्धा करना शुरू कर दिया था। वह तैराकी में अच्छी थी लेकिन कभी पदक नहीं जीता। उनके बड़े भाई प्रतीक कहते हैं कि उस समय स्कूल में मिनी-मैराथन हुआ करते थे। जहां वह अपनी उम्र से दोगुनी लड़कियों को पछाड़ते हुए आसानी से जीत जाती थीं। प्रज्ञा जिस पूल में ट्रेनिंग करती थी वह उसके घर से 10 किमी दूर था। शुरूआत में पिता उन्हें लेकर जाते थे लेकिन बाद में प्रज्ञा खुद रोजाना 20 किलोमीटर साइकिल चलाकर प्रैक्टिस के लिए आने-जाने लगीं।

2013 में बदली किस्मत
वह 2013 का समय था जब प्रज्ञा के लिए सबकुछ बदल गया। प्रज्ञा ने 50 किमी साइकिल दौड़ प्रतियोगिता में बिना अधिक अभ्यास किए जीत हासिल की। तब उन्हें 1 लाख रुपए की पुरस्कार राशि मिली। प्रतीक कहते हैं कि उसे तैरना पसंद था और वह दौड़ने में भी अच्छी थी। लेकिन साइकिल प्रतियोगिता के बाद हमने यह महसूस किया कि वह साइकिलिंग में भी बेहतर कर पाएंगी। रिटायर्ड पित प्रताप कहते हैं कि हम जानते थे कि ट्राइथलॉन क्या होता है क्योंकि गुजरात के कुछ लोगों ने इसे आजमाया था। तो हमने सोचा कि क्यों न तीनों विषयों को मिलाकर एक मौका दिया जाए?

नहीं मिले थे अच्छे कोच
ट्राइथलॉन चुनने के बाद सबसे बड़ी समस्या थी कि इसमें कोच नहीं थे। प्रज्ञा ने अलग-अलग कोच से तीनों खेलों के लिए अलग-अलग प्रशिक्षण जारी रखा। सभी कोच उसे उस खेल में लेने की कोशिश कर रहे थे, जिसमें वह अच्छी थीं। पिता के अनुसार उन्होंने बेटी को प्रशिक्षित करने का फैसला लिया और ऑनलाइन मैटेरियल से सीखना जारी रखा। उन्होंने अमेरिका स्थित जो फ्रेल की किताब द ट्रायथलीट्स ट्रेनिंग बाइबिल आदि को भी पढ़ा। बाद में प्रज्ञा ने सीए की डिग्री हासिल की। लेकिन एकाउंटेंट का जीवन जीने के बजाय उसने ट्रायथलॉन को पूर्णकालिक करियर के रुप में अपनाने का फैसला किया।

कैसे की प्रज्ञा ने तैयारी 
प्रज्ञा जानती थी कि भारत की सड़कों पर साइकिलिंग सीखना है तो सूर्योदय से पहले उठना होगा। वे रोजाना 4 बजे उठ जाती और 5 बजे से पहले ट्रेनिंग के लिए निकल जाती थीं। स्वीमिंग के लिए भी समस्या थी क्योंकि ओलंपिक आकार के स्वीमिंग पुल नहीं थे। गुजरात की अधिकांश झीलें व नदियों में मगरमच्छ पाए जाते हैं। यहां तैरने के लिए बहुत सावधान रहना पड़ता है। यही कारण था कि प्रज्ञा 25 मीटर के स्विमिंग पूल में प्रशिक्षण लेती थी। जो कि प्रशिक्षण के लिए बेहतर नहीं था। यही कारण रहा कि पिछले चार वर्षों से प्रज्ञा ऑस्ट्रेलिया या स्पेन में हर साल छह महीने बिता रही हैं। 

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