सार
उपराष्ट्रपति का यह बयान ऐसे समय में आया है जब मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति के लिए चयन समिति की बैठक होने वाली है।
CJI role in executive appointments: भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Vice President Jagdeep Dhankhar) ने कार्यकारी नियुक्तियों में सीजेआई के शामिल होने को लेकर शुरू हुई बहस में शामिल होते हुए भारत के मुख्य न्यायाधीश को नसीहत दी है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India - CJI) की कार्यकारी नियुक्तियों (Executive Appointments) में शामिल होना लोकतांत्रिक सिद्धांतों के खिलाफ है।
CEC की नियुक्ति को लेकर नई बहस
उपराष्ट्रपति का यह बयान ऐसे समय में आया है जब मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) की नियुक्ति के लिए चयन समिति की बैठक होने वाली है। पहले इस समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और CJI शामिल होते थे लेकिन नए कानून (New Law on CEC Appointment) में CJI को हटा दिया गया है।
दरअसल, CEC राजीव कुमार (Rajiv Kumar) 18 फरवरी को रिटायर हो रहे हैं और उनके उत्तराधिकारी के चयन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi), कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल (Arjun Ram Meghwal) और विपक्ष के नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की समिति 17 फरवरी को बैठक कर सकती है।
CJI की भूमिका पर उपराष्ट्रपति ने उठाया सवाल
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि कैसे एक लोकतांत्रिक देश में CJI को किसी कार्यकारी पद की नियुक्ति प्रक्रिया का हिस्सा बनाया जा सकता है? क्या इसके पीछे कोई कानूनी तर्क है? कार्यपालिका की भूमिका निर्वाचित सरकार की जिम्मेदारी है और न्यायपालिका को इसकी सीमाओं का सम्मान करना चाहिए।
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Judicial Overreach पर जताई चिंता
भोपाल में राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी (National Judicial Academy) में बोलते हुए उपराष्ट्रपति ने Separation of Powers की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि जब संस्थाएं अपनी सीमाओं को भूल जाती हैं तो लोकतंत्र को नुकसान पहुंचता है। न्यायिक समीक्षा (Judicial Review) अच्छी बात है लेकिन संविधान में संशोधन का अंतिम अधिकार संसद के पास होना चाहिए।
संविधान की व्याख्या और अनुच्छेद 145(3)
उपराष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान की व्याख्या को लेकर भी विचार रखे। उन्होंने बताया कि अनुच्छेद 145(3) (Article 145(3)) के तहत संविधान की व्याख्या कम से कम पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जानी चाहिए। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि भारतीय संविधान में संशोधन करने की शक्ति केवल संसद के पास है, और इसमें न्यायपालिका का कोई दखल नहीं होना चाहिए।
‘न्यायपालिका की भूमिका सिर्फ फैसलों तक सीमित होनी चाहिए’
धनखड़ ने कहा कि न्यायपालिका की सार्वजनिक उपस्थिति केवल उसके फैसलों के माध्यम से होनी चाहिए और अन्य माध्यमों से सार्वजनिक बयान देना संस्थागत गरिमा को प्रभावित कर सकता है। धनखड़ ने संवाद (Dialogue) और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (Freedom of Expression) पर जोर देते हुए कहा कि लोकतंत्र में मतभेद टकराव का कारण नहीं बनने चाहिए बल्कि समाधान का रास्ता खोलने चाहिए। उन्होंने कहा कि अभिव्यक्ति का अधिकार केवल मतदान तक सीमित नहीं है बल्कि इसमें सरकार की नीतियों पर चर्चा और भागीदारी भी शामिल है।
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