सार
न्यायमूर्ति जोसेफ ने एक हालिया घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक मूक व्यक्ति पर हमला किया गया था लेकिन बाद में पता चला कि पीड़ित हिंदू था। उन्होंने कहा कि अगर आप इसे (नफरत अपराध) नजरअंदाज करते हैं तो एक दिन यह आपके लिए आएगा।
Supreme court on hate speech: यूपी के नोएडा में दो साल पहले धर्म के आधार पर एक व्यक्ति के साथ दुव्यर्वहार व हेट स्पीच के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त कार्रवाई का आदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि हेट स्पीच के मामले बढ़ते जा रहे हैं। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर घृणा अपराधों की कोई गुंजाइश नहीं है। यह राज्य की जिम्मेदारी है कि ऐसे मामलों में आरोपियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे। कोर्ट ने नोएडा के मामले में लापरवाही बरतने वाले पुलिस अधिकारियों पर भी कार्रवाई का निर्देश देते हुए 3 मार्च तक इस प्रकरण पर एक विस्तृत एफिडेविट फाइल करने को कहा है।
सुनवाई के दौरान क्या कहा कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभद्र या घृणा वाली भाषा पर कोई समझौता नहीं हो सकता है। अपने नागरिकों को ऐसे किसी भी घृणित अपराध से बचाना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है। जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा कि जब घृणा अपराधों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती है तो एक ऐसा माहौल बनाया जाता है जो बहुत खतरनाक है। हेट स्पीच या धर्म के आधार पर किसी के साथ घृणित व्यवहार को हमारे जीवन से जड़ से खत्म करना होगा। घृणास्पद भाषण पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट एक मुस्लिम व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में आरोप लगाया गया है कि 4 जुलाई, 2021 को अपराधियों के गिरोह द्वारा धर्म के नाम पर उसके साथ मारपीट और दुर्व्यवहार किया गया जब वह अलीगढ़ जाने के लिए एक गाड़ी में सवार हुआ था। नोएडा पुलिस ने इस हेट क्राइम की कोई शिकायत दर्ज करने की जहमत नहीं उठाई।
एडिशनल सॉलिसीटर जनरल से कही यह बात...
बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) केएम नटराज से कहा कि आजकल घृणा फैलाने वाले भाषणों को लेकर आम सहमति बन रही है। भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के नाम पर घृणा अपराधों की कोई गुंजाइश नहीं है। इसे जड़ से खत्म करना होगा और ऐसे किसी भी अपराध से अपने नागरिकों की रक्षा करना राज्य का प्राथमिक कर्तव्य है।
अगर कोई व्यक्ति पुलिस के पास आता है और कहता है कि मैंने टोपी पहन रखी थी और मेरी दाढ़ी खींची गई और धर्म के नाम पर गाली दी गई और फिर भी कोई शिकायत दर्ज नहीं हुई तो यह एक समस्या है।
न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि प्रत्येक राज्य अधिकारी की कार्रवाई कानून के प्रति सम्मान को बढ़ाती है। नहीं तो सभी कानून अपने हाथ में ले लेंगे। कोर्ट शाम छह बजे तक इस मामले की सुनवाई करती रही। बेंच ने आगे कहा कि क्या आप स्वीकार नहीं करेंगे कि घृणा अपराध है और आप इससे यूं ही पल्ला झाड़ लेंगे। हम कुछ भी प्रतिकूल नहीं कह रहे हैं। हम केवल अपनी पीड़ा व्यक्त कर रहे हैं।
केएम नटराज ने स्वीकार किया कि पुलिस अधिकारियों की ओर से चूक हुई थी। एएसजी ने कहा कि एसीपी रैंक के अधिकारी की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल का गठन किया गया है और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है। बेंच ने कहा कि आप एक उदाहरण पेश करते हैं और ऐसे लोगों को कर्तव्य में लापरवाही के लिए परिणाम भुगतने देते हैं। जब आप ऐसी घटनाओं के खिलाफ कार्रवाई करते हैं, तभी हम विकसित देशों के बराबर आएंगे। स्पष्ट चूक हुई है। गलती स्वीकार करने में कुछ भी गलत नहीं है।
अल्पसंख्यक हो या बहुसंख्यक, सभी मनुष्य हैं...
न्यायमूर्ति जोसेफ ने कहा कि अल्पसंख्यक हों या बहुसंख्यक, कुछ अधिकार मनुष्य में निहित होते हैं। उन्होंने केएम नटराज से कहा कि आप एक परिवार में पैदा हुए हैं और उसी में पले-बढ़े हैं। हमारे पास अपने धर्म को लेकर कोई विकल्प नहीं है लेकिन हम एक राष्ट्र के रूप में खड़े हैं। यह हमारे देश की सुंदरता, महानता है। हमें इसे समझना होगा। न्यायमूर्ति जोसेफ ने राजस्थान की एक हालिया घटना का जिक्र करते हुए कहा कि एक मूक व्यक्ति पर हमला किया गया था लेकिन बाद में पता चला कि पीड़ित हिंदू था। उन्होंने कहा कि अगर आप इसे (नफरत अपराध) नजरअंदाज करते हैं तो एक दिन यह आपके लिए आएगा। उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि कुछ लोगों का सांप्रदायिक रवैया है।
एएसजी ने कहा कि गिरोह के सदस्यों के खिलाफ आठ प्राथमिकी दर्ज की गई हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई की गई है। पीठ ने तब पूछा कि गिरोह के सदस्यों के खिलाफ पहली प्राथमिकी कब दर्ज की गई और कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया और क्या वे वही लोग थे जिन्होंने पीड़ित पर हमला किया। उन्हें कब जमानत दी गई। केएम नटराज ने कहा कि वह सभी प्राथमिकी का विवरण देते हुए एक हलफनामा दायर करेंगे लेकिन उन्होंने बताया कि पहली प्राथमिकी जून 2021 में "पेचकश गिरोह" के सदस्यों के खिलाफ दर्ज की गई थी। उन्होंने मुसलमानों या हिंदुओं पर हमला करने में कोई भेदभाव नहीं किया है।
एडवोकेट अहमदी ने कहा कि यह स्वीकार करने में दो साल लग गए कि एक आपराधिक घटना हुई थी और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दायर दो हलफनामों में पुलिस ने कहा है कि कोई घृणा अपराध नहीं था। उन्होंने बताया कि 5 जुलाई 2021 को एक पुलिस गश्ती दल मेरे घर आया था और घृणा अपराध कोण के लिए दबाव नहीं डालने के लिए कहा था। उन्होंने बताया कि पीड़ित की दाढ़ी खींची गई, निर्वस्त्र कर धर्म के आधार पर उसका मजाक बनाया गया।
धर्म को कहां पहुंचा दिया हमने...
बेंच ने उत्तर प्रदेश सरकार से एक विस्तृत हलफनामा दायर करने को कहा और मामले की आगे की सुनवाई 3 मार्च के लिए स्थगित कर दी। शीर्ष अदालत ने पिछले साल 21 अक्टूबर को उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली को नफरत फैलाने वाले भाषण देने वालों पर कड़ी कार्रवाई करने को कहा था। कोर्ट ने बेहद तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि हम धर्म के नाम पर कहां पहुंच गए हैं। हमने धर्म को कितना नीचे गिरा दिया है जोकि बेहद दु:खद है। यह मानते हुए कि भारत का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की परिकल्पना करता है। अदालत ने तीनों राज्यों को निर्देश दिया था कि शिकायत दर्ज किए जाने की प्रतीक्षा किए बिना अपराधियों के खिलाफ तुरंत आपराधिक मामले दर्ज किए जाएं।
यह भी पढ़ें: