नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने शुक्रवार को नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को बर्बाद करने वाले आरोपियों से वसूला गया पैसा वापस करने के आदेश दिए। उत्तर प्रदेश सरकर (UP government) ने कोर्ट को बताया कि वसूली नोटिस वापस ले लिए गए हैं, जिसके बाद जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने यूपी सरकार से कहा कि अब तक जो पैसा वसूला गया है वह वापस किया जाए। हालांकि, कोर्ट ने सरकार को प्रदर्शनकारियों पर नए कानून के मुताबिक कार्रवाई करने का अधिकार दिया है।
जरूरत का सामान बेचकर प्रदर्शनकारी कर रहे थे भरपाई
दरअसल, 2021 में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक कानून बनाया है, जिसके तहत सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने पर प्रदर्शनकारियों से वसूली का प्रावधान है। लेकिन सीएए विरोधी प्रदर्शनों को लेकर योगी सरकार ने कानून बनने से पहले नोटिस जारी किए थे, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें कानून के मुताबिक सही नहीं माना। इस मामले को अधिवक्ता नीलोफर खान ने उठाया था। उन्होंने एक न्यूज रिपोर्ट का हवाला देते हुए दावा किया था कि गरीबों को उनकी जरूरत की चीजें बेचकर हर्जाना देना पड़ रहा है। हालांकि, कोर्ट ने रिफंड का निर्देश देते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि राज्य उत्तर प्रदेश रिकवरी ऑफ डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी एक्ट, 2021 के अनुसार नए नोटिस जारी करके प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आगे कार्रवाई कर सकती है।
नए कानून के अनुसार नुकसान की वसूली कर सकती है सरकार
अदालत ने कहा- जैसा कि स्पष्ट किया गया है, राज्य को कानून के अनुसार आगे बढ़ने की स्वतंत्रता है। कोर्ट ने कहा कि राज्य न्यायाधिकरण के समक्ष नुकसान का दावा अधिनियम 2021 के तहत नए सिरे से कर सकता है। आदेश में कहा गया है- इस बीच वसूले गए नुकसान की वापसी होगी। हालांकि यह दावा न्यायाधिकरण के निर्णय के अधीन होगा। अदालत परवेज आरिफ टीटू की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें सीएए विरोधी आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को हुए नुकसान की वसूली के लिए जिला प्रशासन द्वारा कथित प्रदर्शनकारियों को भेजे गए नोटिस को रद्द करने की मांग की गई थी। तिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कहा कि राज्य सरकार ने कोर्ट की पहले की टिप्पणियों का सम्मान किया है और नोटिस वापस लेने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि इस बारे में सभी जिलाधिकारियों को भी सूचित किया गया है।
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सुप्रीम कोर्ट ने 2009 के फैसले के अनुरूप नहीं बताया आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने 11 फरवरी को पिछली सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा भेजे गए कुछ नोटिसों पर आपत्ति जताई थी। ये नोटिस 2021 एक्ट के लागू होने से पहले भेजे गए थे। इसलिए, इसे वैधानिक रूप से सही नहीं माना गया था। अदालत ने कहा था कि नोटिस और उसके अनुसार कार्रवाई शीर्ष अदालत द्वारा 2009 के एक फैसले में पहले जारी किए गए निर्देशों के अनुरूप नहीं थी। कोर्ट ने 11 फरवरी को कहा था- आप शिकायतकर्ता बन गए हैं, आप निर्णायक बन गए हैं और फिर आप आरोपी की संपत्ति कुर्क कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने कोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने 2021 में एक कानून बनाया है। इसके तहत प्रदर्शनकारियों से सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की वसूली किए जाने का प्रावधान है। हालांकि, कोर्ट ने उनकी दलीलों को नहीं माना और नोटिस वापस लेने के आदेश दिए, क्योंकि जो नोटिस जारी किए गए थे, वो यह कानून बनने से पहले जारी किए गए थे। जस्टिस चंद्रचूड़ ने 11 फरवरी को कहा था- आप नए अधिनियम के अनुसार कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र हैं।
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