BR Gavai: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने सुप्रीम कोर्ट से 14 अहम सवाल पूछे हैं। उन्होंने विधेयकों को मंजूरी देने की समय सीमा तय करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाया है।
BR Gavai:सुप्रीम कोर्ट के नए मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई के सामने राष्ट्रपति के सवालों का जवाब देने की पहली चुनौती है। तमिलनाडु गवर्नर केस में सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में गवर्नर और राष्ट्रपति के लिए किसी विधेयक पर निर्णय लेने के लिए समयसीमा निर्धारित की थी।
राष्ट्रपति ने न्यायाधीश बीआर गवई से पूछा चौदह सवाल
राष्ट्रपति ने ये सुप्रीम कोर्ट को ये सवाल ऐसे समय भेजे हैं जब बुधवार को नए मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने पद की शपथ ली है और सुप्रीम कोर्ट और संसद में दूरी बढ़ रही है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत मिले विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए तमिल नाडु गवर्नर केस मामले में सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगते हुए सवाल पूछा है- जब संविधान ने गवर्नर और राष्ट्रपति के लिए समयसीमा तय नहीं की है तो सुप्रीम कोर्ट कैसे कर सकता है? राष्ट्रपति की तरफ से भेजे गए चौदह सवालों का जवाब देने के लिए जस्टिस गवई को अब पांच जजों की संवैधानिक पीठ का गठन करना होगा।
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राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से ये अहम सवाल पूछे हैं-
- जब संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत किसी विधेयक को गवर्नर के समक्ष भेजा जाता है तो उनके पास क्या-क्या विकल्प हैं?
- क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा अपने विवेकाधिकार (constitutional discretion) का प्रयोग न्यायालय द्वारा विचारणीय (justiciable) है?
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधिकार के प्रयोग के लिए यदि संविधान में कोई समय सीमा नहीं की गई है, तो क्या न्यायालय अपने आदेशों के माध्यम से राष्ट्रपति के विवेकाधिकार के प्रयोग के लिए समय सीमा और प्रक्रिया निर्धारित कर सकता है?
- दरअसल संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत भारत के राष्ट्रपति को यह अधिकार प्राप्त है कि वो गवर्नर की तरफ से भेजे गये किसी विधेयक पर निर्णय लें। इस निर्णय को लेने के लिए संविधान ने कोई समय सीमा तय नहीं की है.
- एक और सवाल में सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति ने पूछा है- भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा लिए गए निर्णय क्या उस अवस्था में न्यायालय द्वारा विचारणीय होते हैं जब विधेयक अभी कानून नहीं बना है?
- क्या न्यायालय विधेयक के विषय-वस्तु पर किसी भी प्रकार से, उसके कानून बनने से पहले न्यायिक निर्णयकर सकता है?
- राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से ये भी पूछा है- क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा किए गए संवैधानिक अधिकारों के प्रयोग और उनके आदेशों को किसी भी प्रकार से substitute किया जा सकता है?
- एक और सवाल में सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है- क्या भारत के संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियाँ केवल प्रक्रिया संबंधी कानून तक सीमित हैं, या अनुच्छेद 142 न्यायालय को यह अधिकार देता है कि वह ऐसे निर्देश/आदेश जारी करे जो संविधान या प्रचलित विधि के प्रावधानों के प्रतिकूल या असंगत हों?
भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से 14 कानूनी प्रश्नों पर स्पष्टीकरण मांगा है। ये प्रश्न सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तमिलनाडु के राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच विधायी प्रक्रिया से संबंधित दिए एक अहम फैसले से जुड़े हैं। हाल ही में, तमिलनाडु सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि राज्यपाल ने राज्य विधानसभा द्वारा पारित 10 विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित रखा है, जो कि संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत उनके कर्तव्यों के विरुद्ध है। 8 अप्रैल 2025 को, सर्वोच्च न्यायालय की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने निर्णय दिया कि राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए एक निर्धारित समय सीमा में कार्य करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, राज्यपाल को "पॉकेट वीटो" का अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि राज्यपाल को राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना चाहिए, जब तक कि संविधान में विशेष रूप से अन्यथा न कहा गया हो। इस घटनाक्रम के बाद ही अब राष्ट्रपति ने अपने सवाल सुप्रीम कोर्ट से पूछे हैं और उनका जवाब मांगा है। सुप्रीम कोर्ट अब इस पर विचार के लिए पांच सदस्यीय बैंच का गठन करेगा।