सार
बेमेल गठबंधन की सरकार बनने के बीच राजनीतिक दलों के मध्य फायदा- नुकसान का भी आकलन जोरों पर है। शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के बीच बैठकों का दौर जारी है। इन सब के बीच नई गठबंधन की सरकार बनने की संभावना के बाद शिवसेना पर सत्ता के लिए समझौता करने का आरोप लगना स्वभाविक है।
मुंबई. महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटों से जबरदस्त राजनीतिक सरगर्मी देखने को मिल रही है। दरअसल, राज्य में नई सरकार बनाने के लिए विधानसभा में पर्याप्त संख्याबल ने होने की वजह से बीजेपी को राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के न्योते को अस्वीकार करना पड़ा। जिसके बाद राज्यपाल ने दूसरी बड़ी पार्टी, शिवसेना को सरकार बनाने के लिए न्योता दिया। शिवसेना को सरकार बनाने के लिए एनसीपी और कांग्रेस गठबंधन का समर्थन मिलना जरूरी है।
नहीं बनी बात, टूट गया गठबंधन
शिवसेना समर्थन की कोशिश में है। दिल्ली से मुंबई तक राजनीतिक हलचलें बढ़ गई हैं। बताते चलें कि पिछली बार यानी 2014 में शिवसेना और बीजेपी ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था। बीजेपी सबसे बड़ा दल बनने में कामयाब हुई थी मगर उसके पास बहुमत नहीं था। नतीजों के बाद शिवसेना, बीजेपी के साथ आई और सरकार का गठन किया। जबकि इस बार दोनों पार्टियों के गठबंधन ने मिलकर चुनाव लड़ा। बहुमत भी हासिल किया मगर ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री और सत्ता में बंटवारे की बात तय नहीं हो पाने की वजह से गठबंधन टूट गया। अब 56 विधायकों के साथ दूसरी बड़ी पार्टी शिवसेना सरकार बनाने जा रही है। कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन से समर्थन की उम्मीद भी है। शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का साथ आना महाराष्ट्र में एक बड़ी राजनीतिक घटना है। चर्चा यह हो रही है कि मौजूदा परिदृश्य में आखिर किस पार्टी को सबसे ज्यादा फायदा होगा।
सरकार बनाने पर शिवसेना के नुकसान
शिवसेना भले ही कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने में कामयाब हो जाए, मगर सत्ता के मौजूदा खेल में सबसे ज्यादा नुकसान उसी का होने जा रहा है। बीजेपी से अलग होने के बाद शिवसेना के केंद्रीय मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ेगा। पार्टी को अपने कोर मुद्दे राममंदिर, हिंदुत्व और एंटी एनसीपी-कांग्रेस सेंटीमेंट वाले वोटबैंक का नुकसान उठाना पड़ेगा। यह भी आरोप लगेगा कि सत्ता के लिए समझौता किया।
कांग्रेस को भी नुकसान
राज्य में जिस तरह से कांग्रेस पिछले कुछ चुनाव से अपने कोर वोट बैंक (दलित-मुस्लिम) से दूर हो रही है, अब नए गठबंधन की वजह से और नुकसान उठाना पड़ सकता है। मुस्लिमों के मुद्दे पर ओवैसी आक्रामक राजनीति कर महाराष्ट्र में खड़े हुए हैं। लगातार कांग्रेस पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते रहे हैं। शिवसेना के साथ कांग्रेस के जाने से मुसलमानों के साथ धोखा के रूप में प्रचारित किया जाएगा।
सबसे फायदे में एनसीपी
भले ही मुख्यमंत्री शिवसेना का हो मगर सत्ता का रिमोट हमेशा एनसीपी के पास रहेगा। अब तक भ्रष्टाचार के बहाने शिवसेना और बीजेपी के आरोप का सामना करने वाली पार्टी एनसीपी का साथ मिलने के बाद यह बात साबित करने में कामयाब होगी कि पिछले कुछ सालों में पवार परिवार पर जो आरोप लगाए गए वो राजनीतिक थे। सत्ता में आने पर एनसीपी का जनाधार और मजबूत होने की संभावना।
बीजेपी को क्या मिलेगा
बीजेपी को नैतिक फायदा मिलेगा। पार्टी यह कहने में कामयाब रहेगी कि उसे रोकने के लिए सभी ने एकजुट होकर सरकार बनाई और जनादेश का अपमान किया। चूंकि बेमेल गठबंधन की सरकार है और संख्याबल के हिसाब से शिवसेना को सहयोग देने वाली पार्टियां सरकार में ज्यादा हावी रहेंगी। सरकार की संभावित खींचतान हमेशा बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित होगी। अगर गठबंधन में मतभेद हुआ और सरकार टूटी तो बीजेपी के पास फिर से सत्ता पाने या मध्यावधि चुनाव में लाभ की स्थिति रहेगी।