Laila Kabir death news: लैला कबीर (Laila Kabir), भारत के पूर्व मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस की पत्नी और मौलाना आज़ाद की जीवनी लेखक हुमायूं कबीर की बेटी थीं। उन्होंने इमरजेंसी में लोकतंत्र के लिए आवाज उठाई। जानिए उनकी प्रेरणादायक कहानी।
George Fernandes wife Laila Kabir: 22 जुलाई 1971, दिल्ली का India International Centre। भीड़ नहीं, कैमरों की चकाचौंध नहीं, बस एक सादा समारोह। जॉर्ज फर्नांडिस (George Fernandes) कुर्ता-धोती में, माथे पर चंदन की बिंदियां सजाए, सामने बैठे दोस्तों और साथियों के सामने एक शपथ पत्र पढ़ते हैं-'मैं, जॉर्ज फर्नांडिस, सभी मित्रों के सामने यह शपथ लेता हूं कि मैं जीवन भर लैला के साथ प्यार और सच्चाई का रिश्ता निभाऊंगा।'
यही वो पल था जब लैला कबीर (Laila Kabir), एक केंद्रीय मंत्री की बेटी और प्रतिष्ठित शिक्षाविद् परिवार की संतान, एक क्रांतिकारी समाजवादी नेता की जीवन संगिनी बनीं। महज तीन महीने की मुलाकात के बाद इस विवाह की सादगी, इस रिश्ते की गंभीरता और भविष्य के उतार-चढ़ाव, सभी कुछ इतिहास बन गए।
राजनीति से अलग रहकर भी लोकतंत्र की योद्धा
लैला कबीर राजनीति में सक्रिय नहीं रहीं लेकिन Emergency 1975 के दौर में उन्होंने दुनिया को भारत की सच्चाई बताने का जिम्मा उठाया। जब वे अमेरिका प्रवास पर थीं, तब Washington DC में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने भारत में लोकतंत्र और मानवाधिकारों के पक्ष में खुलकर बयान दिया। उन्होंने राजनीतिक बंदियों की रिहाई की मांग की और यह दिखा दिया कि वे सिर्फ किसी की पत्नी नहीं बल्कि आवाज उठाने वाली सामाजिक योद्धा भी थीं। जार्ज फर्नांडीज जब चुनाव लड़ते थे तो वह उनके चुनाव क्षेत्र में खूब सक्रिय रहती थीं। जार्ज के करीबियों की मानें तो दिल्ली आवास पर भी जार्ज से मिलने अगर कोई भी व्यक्ति पहुंचता था और खाना या नाश्ता का वक्त हुआ रहता तो उनकी रसोई में उसके लिए भी जरूर पकता था।
खुद केंद्रीय मंत्री की बेटी और सुप्रीम कोर्ट के CJI की बहन
लैला, भारत के पूर्व शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जीवनी लेखक और खुद भी केंद्रीय मंत्री रह चुके हुमायूं कबीर (Humayun Kabir) की बेटी थीं। हुमायूं कबीर, नेहरू मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री रह चुके हैं। लैला का रिश्ता भारत की संवैधानिक व्यवस्था से गहराई से जुड़ा था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस अल्तमश कबीर (Altamas Kabir) उनके भाई थे।
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ी, पर कोई अहंकार नहीं
ऑक्सफोर्ड जैसे संस्थान से शिक्षित होने के बावजूद लैला के व्यवहार में कभी भी अभिजात्य का घमंड नहीं दिखा। वे Indian Red Cross Society की एक वरिष्ठ पदाधिकारी रहीं लेकिन समाजवादी कार्यक्रमों में भाग लेना और पुराने साथियों के परिवार से जुड़े रहना उनकी सादगी और मानवीयता का प्रतीक था।
अंतिम क्षणों में जीवन का सबसे बड़ा त्याग
जॉर्ज फर्नांडिस ने जीवन के अंतिम वर्षों में परिवार से दूरी बनाए रखी थी लेकिन जब वे अचेत अवस्था में चले गए, तब लैला उन्हें अपने पंचशील मार्ग स्थित घर लाईं। सब पुराने मतभेद भुलाकर, उन्होंने वर्षों तक उनकी सेवा की। बिना शोर के, बिना कोई राजनीतिक लाभ उठाए, उन्होंने प्यार, समर्पण और कर्तव्य की परिभाषा फिर से लिख दी।
दिल्ली में हुआ निधन, अमेरिका में रह रहा इकलौता पुत्र
लैला कबीर का गुरुवार शाम दिल्ली स्थित उनके आवास पर कैंसर से जूझते हुए निधन हो गया। वह 88 वर्ष की थीं। शुक्रवार को ग्रीन पार्क में उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया गया। लैला को करीब दो साल पहले आंतों के कैंसर का पता चला था और वह ठीक हो गई थीं लेकिन हाल ही में उनकी तबीयत बिगड़ गई। अपने अंतिम दिनों में लैला ने कहा कि वह अस्पताल नहीं जाना चाहतीं। उनके बेटा सीन उर्फ शांतनु गुरुवार को अमेरिका से दिल्ली पहुंचे। लैला और जॉर्ज के इकलौते पुत्र अमेरिका में रहते हैं।