सार
जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की सिंगल बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई। उन्होंने कहा कि ने मामले को बड़ी बेंच को रेफर करना चाहिए। छात्राओं की तरफ से पेश हुए वकील देवदत्त कामत से अदालत ने कहा - मुझे लगता है कि इस मामले में बड़ी बेंच के विचार की आवश्यकता है।
बेंगलुरू। कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High court )ने बुधवार को राज्य में मुस्लिम छात्राओं द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच को बड़ी बेंच के पास भेजा। इस याचिका में छात्राओं ने दावा किया था कि उन्हें सरकारी आदेश के कारण कॉलेजों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही है। उन्होंने हिजाब (सिर पर स्कार्फ) पहनने पर प्रभावी रूप से प्रतिबंध लगाने का आरोप लगाया था।
चीफ जस्टिस लेंगे आगे का फैसला
जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित की सिंगल बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई। उन्होंने कहा कि ने मामले को बड़ी बेंच को रेफर करना चाहिए। छात्राओं की तरफ से पेश हुए वकील देवदत्त कामत से अदालत ने कहा - मुझे लगता है कि इस मामले में बड़ी बेंच के विचार की आवश्यकता है।कर्नाटक हाईकोर्ट के एडवोकेट अभिषेक ने बताया कि यह मामला अब कर्नाटक हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के समक्ष रखा जा रहा है कि मामले को बड़ी बेंच को भेजा जाना चाहिए या नहीं। उन्होंने कहा कि मामले को जल्द से जल्द तय और निपटाया जाना चाहिए क्योंकि छात्र इस मुद्दे से पीड़ित हैं।
दो महीने में कोई आसमान नहीं गिर जाएगा, पढ़ें सुनवाई में किसने क्या कहा
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने अदालत से छात्रों को अंतरिम राहत देने का आग्रह किया है। उनका तर्क है कि उनके पास शैक्षणिक वर्ष के केवल दो महीने बचे हैं। उन्हें बाहर न करें... हमें एक ऐसा रास्ता खोजने की जरूरत है, जिससे कोई भी बच्ची शिक्षा से वंचित न रहे। उन्होंने कहा कि आज जो बेहद जरूरी है, वह यह है कि शांति आए, कॉलेज में संवैधानिक व्यवस्था लौट आए। दो महीने तक कोई आसमान नहीं गिरेगा...
याचिकाओं में उठाए गए सवाल पूरी तरह गलत
कॉलेज विकास समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता साजन पूवैया ने दलील दी कि याचिकाओं में उठाए गए सवाल पूरी तरह से जस्टिस दीक्षित के रोस्टर में आते हैं। इसलिए उन्होंने कोर्ट से पक्षकारों को सुनने के बाद मामले का फैसला करने का आग्रह किया। इस दौरन महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने अंतरिम राहत दिए जाने का विरोध किया। उन्होंने कहा- मेरे काबिल दोस्त (कामत) ने अपनी दलीलें पूरी कर ली हैं। अब, राज्य को बहस करने देना चाहिए। फिर न्यायालय को फैसला करना है ... मैं कहना चाहता था कि याचिकाएं गलत हैं। उन्होंने जीओ पर सवाल उठाया है। प्रत्येक संस्थान को स्वायत्तता दी गई है। राज्य कोई निर्णय नहीं लेता है। आखिरकार कोर्ट ने छात्रों और जनता से सरकारी आदेश के विरोध के मद्देनजर शांति और शांति बनाए रखने की अपील की और मामला बड़ी बेंच को ट्रांसफर कर दिया।
कुछ शरारती तत्व दे रहे हैं मामले को तूल'
जस्टिस दीक्षित ने लोगों को भारतीय संविधान में भरोसा रखने की सीख देते हुए कहा कि कुछ शरारती तत्व ही इस मामले को तूल दे रहे हैं। आंदोलन, नारेबाजी और विद्यार्थियों का एक दूसरे पर हमला करना अच्छी बात नहीं है। इस बीच बेंगलुरू पुलिस ने भी कॉलेज और स्कूलों के पास धारा 144 लगाकर 200 मीटर के दायरे में भीड़ न जुटने के आदेश दिए हैं।