चित्रदुर्ग। अंतरिक्ष में इंसान भेजने की दिशा में भारत की स्पेस एजेंसी इसरो (Indian Space Research Organization) को बड़ी कामयाबी मिली है। अंतरिक्ष यात्री को स्पेस में भेजने के लिए ऐसे वाहन की जरूरत होती है, जिसकी मदद से उसे वापस धरती पर लाया जा सके। इसके लिए इसरो ने रविवार को रियूजेबल लॉन्च व्हीकल ऑटोनॉमस लैंडिंग मिशन (RLV LEX) का सफल संचालन किया। किसी विमान की तरह इस अंतरिक्ष यान को बार-बार इस्तेमाल किया जा सकेगा।

कर्नाटक के चित्रदुर्ग स्थित एरोनॉटिकल टेस्ट रेंज में RLV LEX को रविवार सुबह टेस्ट किया गया। इस दौरान RLV सफलतापूर्वक जमीन पर उतरा। इसरो ने बयान जारी कर कहा, "भारत ने इसे हासिल कर लिया है। इसरो ने DRDO के साथ मिलकर RLV ऑटोनॉमस लैंडिंग मिशन को अंजाम दिया। सुबह 7:10 बजे भारतीय वायु सेना के चिनूक हेलिकॉप्टर से RLV को आसमान में ले जाया गया। इसे हवा में छोड़ दिया गया। यहां से RLV खुद सुबह 7:40 बजे जमीन पर उतरा। इसके लिए RLV ने अपने इंटीग्रेटेड नेविगेशन और गाइडेंस एंड कंट्रोल सिस्टम का इस्तेमाल किया।"

 

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अंतरिक्ष से लौटते वक्त बहुत तेज होती है यान की स्पीड

बयान में कहा गया कि RLV लैंडिंग ठीक उसी प्रकार कराई गई जैसा कि अंतरिक्ष से लौटने के वक्त होता है। इस दौरान वाहन की रफ्तार बहुत अधिक होती है। इस वाहन में कई स्वदेशी सिस्टम इस्तेमाल किए गए हैं। इसके नेविगेशन सिस्टम, इंस्ट्रूमेंटेशन और सेंसर सिस्टम को इसरो ने विकसित किया है। इसरो ने मई 2016 में अपने विंग व्हीकल RLV-TD की री-एंट्री को मिशन HEX के तहत प्रदर्शित किया था।

 

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4.5 km की ऊंचाई से उतरा RLV

चिनूक हेलिकॉप्टर से RLV को 4.5 किलोमीटर की ऊंचाई तक ले जाया गया था। यह पहली बार है जब किसी पंख वाले यान को हेलिकॉप्टर की मदद से इतनी ऊंचाई पर ले जाया गया और छोड़ दिया गया। इसके बाद यान ने सफलतापूर्वक रनवे पर लैंडिंग की।

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गौरतलब है कि RLV एक अंतरिक्ष यान है। अंतरिक्ष यान में लिफ्ट टू ड्रैग अनुपात कम होता है। इसका मतलब है कि यान के पंख छोटे होते हैं जिससे उसे तेजी से आगे बढ़ने के दौरान कम रुकावट का सामना करना पड़ता है। पंख छोटे होने से यान का लिफ्ट कम हो जाता है। इसका मतलब है कि इसे धीमी रफ्तार से लैंड नहीं किया जा सकता। लैडिंग के दौरान इस यान की रफ्तार 350 किमी प्रति घंटा होती है।

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