सार

दिल्ली का नाम बार-बार बदलता रहा है। हर शासक इसे अपने हिसाब से पहचान देता रहा है। सबसे पहले यह पांडवों की राजधानी बनी,  फिर बीच में 1,500 साल तक इसका इतिहास ही गायब रहा।

Delhi : दिल्ली को आज नई सरकार मिल जाएगी। विधानसभा चुनाव के रिजल्ट (Delhi Election Results 2025) फाइनल होते ही अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) में से किसी एक की सत्ता कायम हो जाएगी। दिल्ली में सदियों से किसी का किसी का राज रहा है। हर किसी ने इसे अपनी तरह से रखने की कोशिश की है। दिल्ली (Delhi) जितनी खूबसूरत है, उतनी ही दिलचस्प भी। 1911 में देश की राजधानी बनने से पहले इसके अलग-अलग नाम रहे। कभी इसे इंद्रप्रस्थ कहा गया, तो कभी योगिनियों का शहर। आइए जानते हैं दिल्ली के आखिर कितने नाम रहें और कब-कब इनमें बदलाव हुआ...

दिल्ली का मूल नाम क्या है 

कई इतिहासकारों का मानना है कि प्राचीन समय में दिल्ली का मूल नाम योगिनीपुर हुआ करता था, जो योगिनियों का शहर था। योगमाया देवी के रूप में मां दुर्गा को समर्पित एक मंदिर आज भी महरौली में कुतुबमीनार के ठीक पास मौजूद है। कहा यह भी जाता है कि महाभारत काल में दिल्ली पांडवों राजधानी थी, तब इसका नाम इंद्रप्रस्थ था।

दिल्ली का नाम कई बार बदला 

अंग्रेज इतिहासकार कर्नल गार्डन हेअर्न ने 1908 में 'The Seven Cities of Delhi' नाम से एक किताब लिखी। जिसका दूसरा एडिशन 1928 में आया था। इस किताब में 7 दिल्ली के बारें में जानकारी दी गई है। वहीं, ब्रज कृष्ण चांदीवाला की 1964 में आई किताब 'दिल्ली की खोज' में 18 दिल्ली का जिक्र है। इससे पता चलता है कि यह शहर बार-बार बसता और उजड़ता रहा है। इस पर राज करने वाला हर शासक इसे अपने हिसाब से नाम देता रहा।

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इंद्रप्रस्थ से दिल्ली बनने की कहानी 

दिल्ली का प्राचीन नाम इंद्रप्रस्थ है, जो पांडवों की दिल्ली कहलाती है। 'पृथ्वीराज रासो' के अनुसार, महाभारत के आदिपर्व यानी महाभारत जैसे विशाल ग्रंथ की मूल प्रस्तावना में भी इस नगर के बारें में बताया गया है। पांडवों ने भगवान श्रीकृष्ण की मदद से खांडव प्रस्थ पहुंचकर इंद्र की सहायता से इंद्रप्रस्थ बसाया था। जातकों और पुराणों में भी इंद्रप्रस्थ का जिक्र है। पुराने किले के अंदर का हिस्सा दिल्ली का सबसे प्राचीन हिस्सा माना जाता है। इसे ही इंद्रप्रस्थ से जुड़ा हिस्सा कहा जाता है। पांडवों के बाद और तोमरों के समय से पहले तक दिल्ली की ऐतिहासिक जानकारी ही उपलब्ध नहीं है। इस दौरान दिल्ली का इतिहास ही अज्ञात है। हालांकि, विद्वानों और इतिहासकारों ने अलग-अलग अनुमान दिए हैं।

1500 साल गायब रहा दिल्ली का इतिहास

दिल्ली का ज्ञात इतिहास तोमर वंश के शासन से मिलता है। ईसा पूर्व की 5वीं शती से लेकर 8वीं शती तक तोमरों के अस्तित्व में आने तक करीब 1,500 साल का दिल्ली का इतिहास नहीं मिलता है। 7-8वीं शती में इंद्रप्रस्थ से दिल्ली को हटाकर प्रथम अनंगपुर ने अड़गपुर बसाया, तब इसे अनकपुर या अनंगपुर जैसे नाम से पुकारा गया।

तोमर वंश में दिल्ली का नाम बदलता रहा

अनंगपाल प्रथम के पुत्र महीपाल ने महीपालपुर नाम से बसाया था। कहा जाता है कि महीपालपुर और योगिनीपुर के बीच में अनंगपाल द्वितीय ने 1052 के आसपास ढ़िल्लिकापुरी नई राजधानी बनाई। दिल्ली के पास ही सारवन नामके एक गांव में विक्रम संवत् 1384 का एक शिलालेख भी मिलता है। जिस पर लिखा है- 'देशोऽस्ति हरियानाख्या: पृथ्व्यिां स्वर्गसन्निभ: ढ़िल्लिकाख्या पुरी तत्र तोमरैरस्ति निर्मिता। तोमरान्तरं तस्यां राज्यं हितकंटकम चाहामाना नृपाष्चक्र: प्रजापालन तत्परा:।' इन पंक्तियों में ढ़िल्लिकाख्या पुरी ढ़िल्लिकापुरी का जिक्र किया गया है। अगर यह प्रमाणित है तो यह भा माना जा सकता है कि दिल्ली का मूल नाम ढ़िल्लिकापुरी है। इंद्रप्रस्थ, ढ़िल्लिकापुरी या योगिनीपुर..सभी नाम संस्कृत के हैं। योगिनीपुर से ही जुड़ा इसका एक नाम जुग्गिनिपुर मिलता है।

दिल्ली का नाम 'दिल्ली' कब पड़ा 

जब दिल्ली में मुहम्मद गौरी का आक्रमण हुआ, तब गुलाम वंश का शासन शहर पर हो गया। तब तक दिल्ली नाम जुबान पर चढ़ गया था। इतिहासकारों के मुताबिक, दिल्ली यह नाम भी तोमरों के समय का ही है। कुतुबद्दीन ऐबक की बनवाई मस्जिद पर हिजरी सन् 587 का शिलालेख मिलता है, जिस पर लिखा है कि उस मस्जिद के निर्माण में 5 करोड़ दिल्लियाल यानी दिल्ली की मुद्राएं लगी थीं। दिल्लियाल शब्द में भी दिल्ली है। फारसी में इसी मुद्रा के लिए 'देहलीवाल' शब्द का भी इस्तेमाल हुआ है।

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