क्या भारत में रहने के लिए हिंदी बोलना ज़रूरी है? दिल्ली बीजेपी पार्षद रेनू चौधरी का विदेशी फुटबॉलर से “हिंदी सीखो, वरना…” कहना कैमरे में कैद हो गया। पार्क नियमों की आड़ या भाषा का दबाव? डर के साए में विदेशी कोच, सोशल मीडिया पर भड़की तीखी बहस।

नई दिल्ली। दिल्ली के पटपड़गंज इलाके से जुड़ा एक वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर जबरदस्त चर्चा में है। इस वीडियो में दिल्ली बीजेपी की पार्षद रेनू चौधरी एक विदेशी फुटबॉलर पर हिंदी न बोलने को लेकर नाराज़ होती नजर आ रही हैं। बात सिर्फ एक पार्क की नहीं रही, बल्कि यह मामला अब भाषा, व्यवहार, राजनीति और सहिष्णुता तक पहुंच गया है। लोग सवाल पूछ रहे हैं—क्या भारत में रहने के लिए हिंदी बोलना ज़रूरी है? और क्या किसी विदेशी नागरिक के साथ इस तरह का व्यवहार सही है?

वीडियो में ऐसा क्या हुआ जिसने विवाद खड़ा कर दिया?

वायरल वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि बीजेपी पार्षद रेनू चौधरी दिल्ली के एक पब्लिक पार्क में मौजूद एक विदेशी नागरिक से बहस कर रही हैं। वह उससे पूछती हैं कि भारत में इतने साल रहने के बावजूद उसने हिंदी क्यों नहीं सीखी। इतना ही नहीं, वह यह भी कहती हैं कि अगर वह हिंदी नहीं सीखेगा तो उसे इसके परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। यह बात सुनकर वीडियो देखने वाले कई लोग हैरान रह गए।

पार्क के नियमों का हवाला देकर क्या चेतावनी दी गई?

वीडियो के एक हिस्से में रेनू चौधरी पार्क के नियमों का ज़िक्र करती हैं। वह कहती हैं कि पार्क रात 8 बजे तक बंद हो जाना चाहिए और अगर यहां कोई आपराधिक गतिविधि होती है तो इसकी जिम्मेदारी वहां मौजूद लोगों की होगी। वह कैमरे से बाहर किसी व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए सख्त लहजे में बात करती नजर आती हैं, जिससे माहौल और तनावपूर्ण हो जाता है।

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विदेशी फुटबॉलर कौन है और वह भारत में क्या कर रहा है?

विदेशी नागरिक ने मीडिया से बातचीत में बताया कि वह करीब 12 साल पहले भारत आया था। वह एक फुटबॉल अकादमी से जुड़ा और दिल्ली के अलग-अलग पार्कों में बच्चों को फुटबॉल सिखाने लगा। उसने कहा कि कोविड से पहले हर सेशन में 40 से 45 बच्चे आते थे और माहौल काफी अच्छा था। महामारी के बाद अकादमी बंद हो गई, लेकिन उसने खुद से कोचिंग शुरू की।

गरीब बच्चों के लिए वह क्या काम कर रहा था?

विदेशी फुटबॉलर का कहना है कि 2022 के बाद उसने खासतौर पर उन बच्चों को चुना जिनमें प्रतिभा थी लेकिन संसाधन नहीं थे। उसने बच्चों को जर्सी दी, टूर्नामेंट में भेजा और आगे बढ़ने में मदद की। उसके अनुसार, कुछ बच्चे आगे चलकर सेना और पुलिस जैसी सेवाओं में भी पहुंचे हैं। यही वजह है कि वह इस घटना से काफी आहत है।

घटना के बाद विदेशी कोच इतना डरा क्यों हुआ?

विदेशी फुटबॉलर ने साफ कहा कि यह घटना 13 दिसंबर की है, जब वह अपने भारतीय दोस्तों के साथ पार्क में फुटबॉल खेल रहा था। पहले तो उसे लगा कि यह मजाक है, लेकिन जब बार-बार हिंदी न बोलने को लेकर टोका गया, तो वह डर गया। उसका कहना है—“अगर ऐसा ही चलता रहा, तो मुझे भारत छोड़ना पड़ सकता है।”

रेनू चौधरी ने अपने बचाव में क्या कहा?

विवाद बढ़ने के बाद रेनू चौधरी ने सफाई दी। उन्होंने कहा कि पार्क का इस्तेमाल व्यावसायिक कोचिंग के लिए किया जा रहा था, जिसकी MCD से न अनुमति ली गई थी और न ही कोई शुल्क दिया जा रहा था। उन्होंने यह भी कहा कि उनके स्टाफ ने कई बार कोच से बात करने की कोशिश की, लेकिन भाषा की दिक्कत के कारण बातचीत नहीं हो पाई।

क्या भाषा का मुद्दा सही है या राजनीति?

स्थानीय लोगों और सोशल मीडिया यूज़र्स का मानना है कि यह सिर्फ नियमों का मामला नहीं, बल्कि भाषा को लेकर ज़रूरत से ज़्यादा सख्ती दिखाई गई। मयूर विहार के एक निवासी ने कहा कि जब भारतीय दूसरे राज्यों में रहते हैं, तब वे भी वहां की भाषा नहीं सीखते। ऐसे में किसी विदेशी से हिंदी सीखने की उम्मीद करना कितना सही है, यह बड़ा सवाल है।

सोशल मीडिया पर लोग क्या कह रहे हैं?

सोशल मीडिया पर इस वीडियो को लेकर गुस्सा साफ दिखाई दे रहा है। कई यूज़र्स ने इसे “घिनौना व्यवहार” बताया, तो कुछ ने कहा कि भाषा के नाम पर डर का माहौल बनाना गलत है। कुछ लोगों ने इसे बेंगलुरु और मुंबई के बाद दिल्ली में फैलती भाषा राजनीति बताया।