सार
हमारे पुलिसकर्मी भी इंसान हैं। वो हमें सुरक्षित रखने के लिए तत्पर हैं। हमें उनकी छवि खराब नहीं करनी चाहिए। आम लोगों को प्रशासन से डरने की जरूरत नहीं है, पर जो लोग कानून तोड़ते हैं उन्हें हर हाल में डरना चाहिए।
नई दिल्ली. नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में हिंसक हो गया। बसों को आग के हवाले कर दिया गया और सार्वजनिक संपत्तियों के साथ तोड़फोड़ की गई। यह बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है और मीडिया को इसे सावधानीपूर्वक संभालना चाहिए। ऐसी चीजों से सनसनी खबरें निकालना बहुत आसान होता है, पर मीडिया का कर्तव्य है कि वह जिम्मेदारीपूर्वक खबरें दिखाए। इसी तरह हमारे समाज में पुलिस की भूमिका कानून व्यवस्था बनाए रखने की है। पुलिसकर्मियों को ट्रेनिंग भी इसी काम की दी जाती है। यह पुलिस के काम करने का आदर्श स्वरूप है। पुलिस से कभी भी किसी विचारधारा से प्रभावित होकर काम करने की उम्मीद नहीं की जाती है। जब तक हमारी पुलिस अपने अनुशासन में रहती है तब तक किसी को कोई समस्या नहीं है। एक हद के बाद जब कुछ असामाजिक तत्वों को कारण विरोध प्रदर्शन हिंसक हो जाते हैं तब पुलिस को बल प्रयोग करने से पीछे नहीं हटना चाहिए।
भीड़ के हिंसक हो जाने पर पुलिस को क्या करना चाहिए ?
पुलिस का पहला और सबसे महत्वपूर्ण काम समाज में कानून व्यवस्था बनाए रखना है। पुलिस को इसके लिए सालों तक ट्रेनिंग दी जाती है और उनके पास इसके लिए एक मानक संचालन प्रक्रिया है। पुलिस को अपने काम के बीच अपनी भावनाओं को नहीं आने देना चाहिए। पुलिस को निर्धारित तरीके से अपना काम करना चाहिए और अगर वह ऐसा कर रही है तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। कई बार कई चीजें अपनी हद पार कर जाती हैं और पुलिस को मजबूरन बल प्रयोग करना पड़ता है। दुर्भाग्यवश जमिया के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। यह घटना मुख्य रूप से असामाजिक तत्वों से प्रेरित थी।
किस हद तक उचित है बल का प्रयोग ?
आम नागरिकों के साथ मारपीट करने में पुलिस को कोई आनंद नहीं मिलता है। हाल ही में हुई घटनाओं में पहले पुलिस के ऊपर पत्थर फेके गए, जिसमें पुलिस और आम नागरिक घायल हुए। साथ ही सार्वजनिक संपत्ति को खासा नुकसान पहुंचा। जब पुलिस इन लोगों को गिरफ्तार करने पहुंची ये लोग हॉस्टल और लाइब्रेरी में जाकर छिप गए। अव पुलिस के पास दूसरा कोई चारा नहीं था। यदि छात्र गुंडागर्दी का सहारा लेते हैं, तो बल प्रयोग करना चाहिए।
जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के वीसी ने दावा किया है कि पुलिस ने परिसर में जबरन प्रवेश किया। ऐसे हालातों में क्या पुलिस को बॉडी कैमरा पहनना भी जरूरी होना चाहिए ?
भारत जैसे विकासशील देश में , जहां पुलिस के पास जरूरी हथियार और सुरक्षा उपकरण नहीं होते हैं। वहां बॉडी कैमरा पहनने की उम्मीद करना अतिश्योक्ति होगी। आदर्श रूप से यह जरूर होना चाहिए, पर अधिकतर मामलों में पुलिस द्वारा बर्बरता की घटनाएं मनगढंत होती हैं।
हमारे पुलिसकर्मी भी इंसान हैं। वो हमें सुरक्षित रखने के लिए तत्पर हैं। हमें उनकी छवि खराब नहीं करनी चाहिए। आम लोगों को प्रशासन से डरने की जरूरत नहीं है, पर जो लोग कानून तोड़ते हैं उन्हें हर हाल में डरना चाहिए। अगर कानून तोड़ने वालों को प्रशासन का डर नहीं होगा तो वो देश में अराजकता फैलाने लगेंगे। हमें अपने देश में किसी भी एजेंडा को हीं फैलने देना चाहिए और हर हाल में उन वर्दीधारियों का समर्थन करना चाहिए जो देश की शांति और एकता को बनाए रखने के लिए दिन रात अपना खून पसीना एक करते रहते हैं। जय हिंद !
कौन हैं अभिनव खरे
अभिनव खरे एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ हैं, वह डेली शो 'डीप डाइव विद अभिनव खरे' के होस्ट भी हैं। इस शो में वह अपने दर्शकों से सीधे रूबरू होते हैं। वह किताबें पढ़ने के शौकीन हैं। उनके पास किताबों और गैजेट्स का एक बड़ा कलेक्शन है। बहुत कम उम्र में दुनिया भर के 100 से भी ज्यादा शहरों की यात्रा कर चुके अभिनव टेक्नोलॉजी की गहरी समझ रखते है। वह टेक इंटरप्रेन्योर हैं लेकिन प्राचीन भारत की नीतियों, टेक्नोलॉजी, अर्थव्यवस्था और फिलॉसफी जैसे विषयों में चर्चा और शोध को लेकर उत्साहित रहते हैं। उन्हें प्राचीन भारत और उसकी नीतियों पर चर्चा करना पसंद है इसलिए वह एशियानेट पर भगवद् गीता के उपदेशों को लेकर एक सफल डेली शो कर चुके हैं।
मलयालम, अंग्रेजी, कन्नड़, तेलुगू, तमिल, बांग्ला और हिंदी भाषा में प्रासारित एशियानेट न्यूज नेटवर्क के सीईओ अभिनव ने अपनी पढ़ाई विदेश में की हैं। उन्होंने स्विटजरलैंड के शहर ज्यूरिख सिटी की यूनिवर्सिटी ETH से मास्टर ऑफ साइंस में इंजीनियरिंग की है। इसके अलावा लंदन बिजनेस स्कूल से फाइनेंस में एमबीए (MBA) भी किया है।