सार

कॉमनवेल्थ गेम्स (CWG) 2010 घोटाले में बड़ा अपडेट! दिल्ली कोर्ट ने 14 साल चली मनी लॉन्ड्रिंग जांच पर लगाई अंतिम मुहर, ED की क्लोजर रिपोर्ट को दी मंजूरी। जानिए पूरी कहानी।

Commonwealth Scam 2010? कॉमनवेल्थ गेम्स (CWG) 2010 घोटाले से जुड़ी बहुचर्चित मनी लॉन्ड्रिंग जांच आखिरकार 14 साल बाद अपने अंजाम पर पहुंच गई। दिल्ली की एक विशेष अदालत ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की जांच को बंद करते हुए उसकी क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार कर ली है। इसके साथ ही भारत के सबसे बड़े और बहुचर्चित घोटालों में से एक पर कानूनी प्रक्रिया का पर्दा गिर गया है।

आरोपों से लेकर क्लोजर तक का सफर

CWG घोटाले में पूर्व आयोजन समिति अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी और तत्कालीन महासचिव ललित भनोट समेत कई वरिष्ठ अधिकारियों पर आरोप लगे थे। आरोप था कि गेम्स से जुड़े दो बड़े कॉन्ट्रैक्ट में भारी गड़बड़ी हुई, जिससे कुछ निजी कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया और आयोजन समिति को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ।

दिल्ली के विशेष जज संजीव अग्रवाल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक अधिनियम (PMLA) की धारा 3 के तहत कोई अपराध साबित नहीं हो सका। जांच के दौरान 'अपराध से अर्जित संपत्ति' (Proceeds of Crime) का भी कोई सबूत नहीं मिला।

ED और CBI दोनों की जांच फेल

विशेष जज ने कहा कि ED द्वारा की गई गहन जांच के बावजूद, अभियोजन पक्ष किसी भी प्रकार के मनी लॉन्ड्रिंग अपराध को सिद्ध नहीं कर पाया। इसी कारण, अदालत ने ED द्वारा दायर क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर केस बंद कर दिया।

गौरतलब है कि इससे पहले 2016 में CBI ने भी अपनी जांच में सबूतों के अभाव का हवाला देते हुए संबंधित भ्रष्टाचार मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी। CBI ने माना था कि उनके पास आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सामग्री नहीं है।

किस बात पर था घोटाले का आरोप?

CBI और ED की जांचों का फोकस मुख्य रूप से दो कॉन्ट्रैक्ट्स—Games Workforce Service (GWS) और Games Planning, Project and Risk Management Services (GPPRMS)— पर था। आरोप था कि इवेंट नॉलेज सर्विसेज (Event Knowledge Services - EKS) और अर्न्स्ट एंड यंग (Ernst and Young - E&Y) की साझेदारी को नियमों को ताक पर रखकर ठेका दिया गया था जिससे आयोजन समिति को करीब 30 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

राजनीतिक भूचाल का भी था कारण

2010 में हुए इस घोटाले ने देश की राजनीति में भूचाल ला दिया था। संसद से लेकर सड़क तक विरोध प्रदर्शन हुए। इस घोटाले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि को भी नुकसान पहुंचाया था। इस घोटाले के आरोपों में घिरी तत्कालीन कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार को सत्ता से बाहर जाना पड़ा था। लेकिन अब आज, 14 साल बाद, अदालत ने स्पष्ट कर दिया कि किसी भी एजेंसी के पास पर्याप्त सबूत नहीं हैं जो मनी लॉन्ड्रिंग या घोटाले के आरोपों को साबित कर सकें।

कोर्ट ने कहा कि बिना किसी ठोस सबूत के किसी व्यक्ति को लंबे समय तक अभियोजन का सामना करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। न्यायिक प्रक्रिया का उद्देश्य निष्पक्षता और सच्चाई की खोज है, न कि केवल संदेह के आधार पर लोगों को परेशान करना।