सार
CJI BR Gavai Statement: मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई (CJI BR Gavai) ने महाराष्ट्र दौरे पर प्रोटोकॉल उल्लंघन पर टिप्पणी करते हुए कार्यपालिका को आड़े हाथों लिया। उन्होंने Article 142 का जिक्र करते हुए कहा कि अगर जज ऐसा करते तो बड़ी बहस छिड़ जाती।
CJI BR Gavai Statement: भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई (CJI BR Gavai) ने अपने गृह राज्य महाराष्ट्र दौरे के दौरान कार्यपालिका के व्यवहार पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि अगर जजों ने प्रोटोकॉल तोड़ा होता तो आज चारों तरफ Article 142 की चर्चा हो रही होती। उन्होंने ये बातें मुंबई में बार काउंसिल ऑफ महाराष्ट्र एंड गोवा द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में कहीं, जहां महाराष्ट्र के मुख्य सचिव, डीजीपी और मुंबई पुलिस कमिश्नर की गैरमौजूदगी पर उन्होंने नाराजगी जाहिर की।
'संवैधानिक संस्थानों में आपसी सम्मान जरूरी'
सीजेआई गवई ने कहा: जब कोई महाराष्ट्र का व्यक्ति भारत का मुख्य न्यायाधीश बनकर पहली बार राज्य में आता है तो यह अपेक्षित होता है कि मुख्य सचिव, डीजीपी और पुलिस कमिश्नर उनकी अगवानी में उपस्थित हों। यह सम्मान का विषय है, ना कि सिर्फ प्रोटोकॉल का। उन्होंने कहा कि तीनों संवैधानिक स्तंभ – न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका – समान हैं और एक-दूसरे को सम्मान देना चाहिए।
Chaitya Bhoomi पहुंचे तो अधिकारी दिखे
मुख्य न्यायाधीश जब बाबासाहेब आंबेडकर की समाधि स्थल चैत्यभूमि पहुंचे, तब राज्य के मुख्य सचिव सुजाता सौनिक, डीजीपी रश्मि शुक्ला और पुलिस कमिश्नर देवेन्द्र भारती वहां मौजूद थे। माना जा रहा है कि गवई की टिप्पणी के बाद ही अधिकारियों ने स्थिति सुधारी।
'मैं प्रोटोकॉल को लेकर जिद्दी नहीं लेकिन तथ्य तो बताने होंगे'
चैत्यभूमि पर पत्रकारों से बातचीत में गवई ने कहा कि मैं प्रोटोकॉल को लेकर जिद्दी नहीं हूं लेकिन जो हुआ वो बताना जरूरी है।
Article 142 पर राजनीतिक बहस की पृष्ठभूमि
मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी ऐसे समय आई है जब सुप्रीम कोर्ट के एक हालिया फैसले के बाद न्यायपालिका पर 'ज्यूडिशियल ओवररीच' (Judicial Overreach) के आरोप लगे हैं। तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल आरएन रवि के बीच बिलों को लेकर टकराव पर कोर्ट ने Article 142 के तहत आदेश दिया था और राष्ट्रपति और राज्यपालों के बिलों पर फैसला लेने की समयसीमा तय की थी।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से मांगी राय
इस फैसले के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि क्या राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत कैबिनेट की सलाह से बंधे हैं? क्या राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 201 के तहत लिए गए फैसलों पर समयसीमा लगाई जा सकती है?
सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला
जस्टिस जेबी पारडीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने कहा था कि राज्यपाल द्वारा 10 विधेयकों को रोकना 'अवैध और मनमाना' था। कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान की व्याख्या का अधिकार सिर्फ अदालतों को है, न कि कार्यपालिका को।
BJP सांसद निशिकांत दुबे का विवादित बयान
इस फैसले पर भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने कहा था कि अगर हर बात के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना है तो संसद और विधानसभा बंद कर दी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी को गंभीर रूप से गैर-जिम्मेदाराना बताते हुए कहा कि अदालतें 'फूलों की तरह नाजुक नहीं' हैं।