प्लेन उड़ान से पहले 'चिकन गन' टेस्ट से गुजरते हैं, जिसमें इंजन में जिंदा मुर्गा डालकर उसकी क्षमता जांची जाती है। यह टेस्ट पक्षियों के टकराने से होने वाले नुकसान का आकलन करने के लिए किया जाता है।

नई दिल्ली: प्लेन के उड़ान भरते या उतरते समय पक्षी टकरा सकते हैं। कई लोगों के मन में सवाल होता है कि इतने बड़े प्लेन को एक छोटा सा पक्षी क्या नुकसान पहुंचा सकता है? लेकिन उड़ान भरते और उतरते समय प्लेन 350 से 500 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से होता है। ऐसे में छोटे से पक्षी के टकराने से भी बड़ी समस्या हो सकती है। पक्षियों के टकराने से प्लेन का विंडशील्ड टूट सकता है। कई बार ऐसा हुआ है कि आगे का शीशा टूटने से पायलट घायल हो गए।

अगर पक्षी इंजन में घुस जाए या प्लेट से टकरा जाए तो प्लेन गिर भी सकता है। पक्षी के टकराने से इंजन बंद हो सकता है और आग लग सकती है। इससे प्लेन क्रैश हो सकता है। इसलिए दुनिया भर की विमानन कंपनियां उड़ान से पहले 'चिकन गन' टेस्ट करती हैं। यानी उड़ान से पहले इंजन में एक जिंदा मुर्गे को डाला जाता है। यह टेस्ट क्यों किया जाता है, इसकी जानकारी इस लेख में दी गई है।

क्या है चिकन गन टेस्ट?

सीधे शब्दों में कहें तो यह एक प्लेन इंजन टेस्ट है। प्लेन के इंजन की क्षमता जांचने के लिए जिंदा मुर्गे का इस्तेमाल किया जाता है। पक्षियों के टकराने से होने वाले असर को समझने के लिए इंजीनियर चिकन गन नाम की एक खास मशीन का इस्तेमाल करते हैं। यह एक बड़ी कंप्रेस्ड एयर गन होती है, जिससे प्लेन के विंडशील्ड, पंखों और इंजन पर मुर्गे को फायर किया जाता है। मुर्गे की रफ्तार असली पक्षी के टकराने की रफ्तार के बराबर होती है।

यह टेस्ट लैब में किया जाता है। प्लेन का शीशा और इंजन सही स्थिति में है या नहीं, यह जानने के लिए लैब में चिकन गन टेस्ट किया जाता है। लैब में इंजीनियर हाई-स्पीड कैमरों से पूरी घटना को रिकॉर्ड करते हैं। फिर पक्षी के टकराने से हुए नुकसान का विश्लेषण करते हैं।

चिकन गन टेस्ट या बर्ड स्ट्राइक टेस्ट जिंदा मुर्गे से किया जाता है। क्योंकि मुर्गे का वजन, आकार और टिशू हवा में उड़ने वाले पक्षी जैसा ही होता है। आजकल सभी बड़ी विमान निर्माता कंपनियां इस तरीके को अपना रही हैं। इस टेस्ट में पास होने वाले प्लेन को ही उड़ान भरने की अनुमति मिलती है।

कैसा होता है बर्ड स्ट्राइक टेस्ट?

उड़ान से पहले प्लेन के इंजन, कॉकपिट विंडशील्ड और पंखों को एक मजबूत फ्रेम में रखा जाता है। फिर इन सभी हिस्सों की क्षमता की जांच की जाती है। लैब में प्लेन के उड़ान की गति जैसी व्यवस्था की जाती है।

फिर तय किया जाता है कि इंजन पर क्या फेंका जाए। मरा हुआ मुर्गा, नकली पक्षी या जिलेटिन बॉल, ये कुछ विकल्प होते हैं। आमतौर पर जिंदा मुर्गे को फेंक कर टेस्ट किया जाता है। प्लेन की उड़ान की गति से ही जिंदा मुर्गे को फेंका जाता है। प्लेन के मुख्य हिस्सों पर मुर्गा फेंकने पर क्या होता है, इसे रिकॉर्ड किया जाता है। फिर वीडियो में हर पल को ध्यान से देखा जाता है।

यह वीडियो दिखाता है कि मुर्गा फेंकने से कितना और कहां नुकसान हुआ। फिर इंजीनियर और तकनीशियन जांच करते हैं कि इंजन ब्लेड टूटा है या नहीं, विंडशील्ड में दरार आई है या नहीं, प्लेन के पंख को नुकसान हुआ है या नहीं। अगर कोई बड़ा नुकसान नहीं होता है, तो प्लेन उड़ान भर सकता है।