हिंदू पुराणों में कृष्ण की राजधानी द्वारका नगरी समुद्र में डूबी हुई मानी जाती है। लंबे समय से गुजरात के तट पर इस पौराणिक शहर की खोज की जा रही थी। कुछ पत्थरों के अवशेष मिले थे, लेकिन यह द्वारका ही है, इसकी पुष्टि नहीं हो पाई थी। इसी बीच खंभात की खाड़ी में एक प्राचीन शहर के अवशेष मिलने की खबर आई है।

'खंभात का खोया शहर' के नाम से मशहूर यह शहर लगभग 9,500 साल पहले समुद्र में डूब गया था। काम्बे की खाड़ी के नाम से भी जानी जाने वाली यह खाड़ी गुजरात में अरब सागर से लगी हुई है और मुंबई और दीव द्वीप के उत्तर में स्थित है। साल 2000 में पहली बार इस डूबे हुए शहर के अवशेष मिले थे। अगर यह सच है, तो यह खोज इतिहास की हमारी समझ को बदल सकती है।

भारत में सबसे पुराना ज्ञात शहर सिंधु घाटी सभ्यता का है। लेकिन, तमिलनाडु के कीलाड़ी गाँव में पिछले दस सालों में वैगई नदी के किनारे एक और भी पुराना शहर मिला है। कीलाड़ी की खुदाई को लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और शोधकर्ताओं के बीच विवाद हाल ही में खबरों में था। इसी दौरान खंभात शहर की खबरें फिर से सामने आई हैं।

राष्ट्रीय समुद्र प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) ने दिसंबर 2000 में समुद्री प्रदूषण सर्वेक्षण के दौरान पहली बार इस शहर के अवशेषों का पता लगाया था। सोनार तकनीक का उपयोग करके, वैज्ञानिकों ने समुद्र तल पर बड़े, ज्यामितीय आकार देखे। इन आकृतियों को पानी में डूबे एक शहर के संकेत के रूप में व्याख्यायित किया गया। लगभग 120 फीट पानी के नीचे स्थित इस जगह की लंबाई लगभग पाँच मील और चौड़ाई दो मील है।

इसके बाद हुई कई खोजों में इस क्षेत्र से मिट्टी के बर्तन, मोती, मूर्तियाँ और मानव अवशेष सहित कई कलाकृतियाँ मिलीं। रेडियोकार्बन डेटिंग से पता चला है कि इन वस्तुओं की उम्र लगभग 9,500 साल है। यानी, खंभात का शहर 2500 ईसा पूर्व की सिंधु घाटी सभ्यता से भी बहुत पुराना है।

NIOT के भूविज्ञानी डॉ. बद्री नारायणन का दावा है कि यह जगह एक विकसित सभ्यता की है जो आखिरी हिमयुग के अंत में समुद्र के स्तर में वृद्धि के कारण पानी में डूब गई थी। उनका कहना है कि यह खोया हुआ शहर हड़प्पा सभ्यता से पहले का हो सकता है। खंभात की खोज ने उस धारणा को चुनौती दी है कि 5500 ईसा पूर्व से पहले पृथ्वी पर कोई जटिल समाज नहीं थे।

हालांकि, सभी शोधकर्ता इस दावे से सहमत नहीं हैं। डॉ. इरावतम महादेवन और डॉ. अस्को पारपोला जैसे विशेषज्ञों ने इन दावों पर सवाल उठाए हैं। डॉ. महादेवन मानते हैं कि कुछ संरचनाएँ मानव निर्मित हैं, लेकिन वह नदियों द्वारा प्राचीन संरचनाओं को समुद्र में बहा ले जाने की संभावना की ओर इशारा करते हैं। डॉ. पारपोला ने रेडियोकार्बन डेटिंग पर सवाल उठाया है। उनका तर्क है कि पानी के बहाव के कारण पत्थरों का आकार बदल सकता है। बात चाहे जो भी हो, दो दशक बाद भी अधिकारी इस बात की पुष्टि नहीं कर पाए हैं कि खंभात की खाड़ी में जो कुछ भी है वह मानव निर्मित प्राचीन शहर है या नहीं।