सार

पोप फ्रांसिस ने समलैंगिक जोड़ों को आशीर्वाद देने की पुष्टि की है, जो वेटिकन की नीति में एक बड़ा बदलाव है। हालांकि, चर्च अब भी विवाह को एक पुरुष और एक महिला के बीच ही मानता है।

पोप फ्रांसिस ने LGBTQ को लेकर एक बड़ा कदम उठाया था, जिसमें उन्होंने समलैंगिक जोड़े को आशीर्वाद देने की आधिकारिक पुष्टि की है, ये कदम वेटिकन की नीति में एक बड़ा क्रांतिकारी बदलाव है। वेटिकन के सिद्धांत कार्यालय के एक नए डॉक्यूमेंट में में पोप द्वारा दो रूढ़िवादी कार्डिनल्स को दिए गए पहले के कम्यूनीकेशन को हाईलाइट किया गया है, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया है कि ईश्वर के प्रेम और दया की चाह रखने वाले व्यक्तियों को एक शर्त के रूप में "संपूर्ण नैतिक विश्लेषण" से नहीं गुजरना चाहिए। चलिए पोप फ्रांसिसी के इस फैसले को इन 6 पॉइंट में समझते हैं...

विवाह पर परंपरागत विचार: 

कैथोलिक चर्च अब भी यही मानता है कि विवाह सिर्फ एक पुरुष और एक महिला के बीच होता है। 2023 का नया आदेश भी इस सिद्धांत को नहीं बदलता।

समलैंगिक जोड़ों को आशीर्वाद: 

अब पादरी समलैंगिक जोड़ों को अनौपचारिक रूप से आशीर्वाद दे सकते हैं, लेकिन ये आशीर्वाद किसी विवाह अनुष्ठान का हिस्सा नहीं होना चाहिए और इसे विवाह की स्वीकृति न समझा जाए।

करुणा और समावेशिता पर ज़ोर: 

पोप फ्रांसिस मानते हैं कि LGBTQ+ लोगों को ईश्वर के प्रेम से वंचित नहीं किया जाना चाहिए और उन्हें इसके लिए "गंभीर नैतिक जांच" से नहीं गुजरना चाहिए।

2013 का प्रसिद्ध बयान: 

उन्होंने 2013 में कहा था – "मैं कौन होता हूं जो किसी को जज करूं?" – जिससे यह संकेत मिला कि चर्च को LGBTQ+ लोगों के साथ दयालु और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए।

पाप और अपराध में फर्क: 

पोप फ्रांसिस मानते हैं कि समलैंगिक संबंध विवाह के बाहर पाप माने जा सकते हैं, लेकिन वह LGBTQ+ समुदाय के खिलाफ कानूनी सजा या अपराधीकरण के विरोधी हैं।

संतुलित दृष्टिकोण: 

पोप फ्रांसिस की सोच परंपरा और करुणा का मेल है – वे सिद्धांत नहीं बदलते, लेकिन व्यवहार में इंसानियत और प्रेम की बात करते हैं। इस वजह से उन्हें उदार सोच वालों और पारंपरिक धर्मगुरुओं दोनों की आलोचना झेलनी पड़ती है।