सार

तलाक के बाद दूसरी शादी का विचार? जल्दबाज़ी न करें, आत्मविश्लेषण ज़रूरी है। सही साथी चुनना, खुलकर बातचीत और परिवार को शामिल करना भी महत्वपूर्ण है।

रिलेशनशिप डेस्क. तलाक के बाद अक्सर महिलाओं की शादी से विश्वास उठ जाता है। वो जिंदगी में किसी दूसरे इंसान को दस्तक देने का मौका नहीं देती हैं। लेकिन डिवोर्स के बाद जिंदगी नहीं रुकती तो फिर प्यार पर पाबंदी क्यों करना चाहिए। हर बार शादी फेल नहीं होती है। लेकिन दूसरी शादी करने से पहले कदम थोड़ा सोच-समझकर उठाना चाहिए। पहली शादी के अनुभवों को सबक लेकर सही मेंटल हेल्थ के साथ आप दूसरी शादी को सफल बना सकती हैं। आइए बताते हैं महिलाओं को सेकंड मैरेज करने से पहले क्या-क्या सावधानी बरतनी चाहिए

आत्मविश्लेषण करें

तलाक के बाद खुद पर फोकस करना चाहिए। खाली वक्त में यह सोचे कि आखिर क्या गलत हुआ कि शादी टूट गई। अगर आपकी तरफ से कोई गलती हुई है तो फिर अपनी गलतियों को स्वीकार करें और उसमें सुधार करें। अगर लाइफ में कोई दस्तक दे रहा है तो उसके साथ सात फेरे लेने से पहले मेंटल और इमोशनल रूप से खुद को तैयार करें।

दूसरी शादी करने में जल्दीबाजी न करें

तलाक के बाद खुद को संभालना और खुद पर फोकस करना बहुत जरूरी होता है। अपने घावों को भरने में समय दें। इसके बाद अगर कोई आपकी जिंदगी में आता है तो फिर उसके साथ थोड़ा वक्त गुजारें उसे समझे और फिर शादी का फैसला करें। किसी दबाव या अकेलेपन की वजह से शादी बिल्कुल ना करें। प्यार हो और विश्वास हो कि इस शादी को ताउम्र निभा सकती हूं तो आगे बढ़ें।

सही व्यक्ति को चुनें

दूसरी शादी के लिए सही व्यक्ति का चुनाव करना सबसे महत्वपूर्ण है। इस बार अपनी भावनाओं के साथ-साथ व्यवहार, मूल्यों और जीवन के लक्ष्यों पर फोकस करें। आप यह तय करें कि जिसके साथ आप दूसरी बार जिंदगी जीने की शुरुआत करने जा रही है वो आपके लायक हैं आपका सम्मान करेंगा। उसके साथ आपके विचार मिल रहे हैं।

खुलकर बातचीत करें

जिस इंसान से आप डेट कर रही है उसके साथ खुलकर बातचीत करें। अपने विचार उसके सामन रखें। आपको कितनी आजादी चाहिए, आप शादी के बाद उससे क्या उम्मीद करती हैं ये तमाम बातें उससे खुलकर करें। अगर बच्चों की या फैमिली की जिम्मेदारी आपके ऊपर है तो इसके बारे में भी चर्चा करें।

परिवार और बच्चों को शामिल करें

अगर आप या आपके पार्टनर के बच्चे हैं, तो यह सुनिश्चित करें कि उन्हें इस नए रिश्ते में सहज महसूस हो। बच्चों की भावनाओं का सम्मान करें और उन्हें समय दें। परिवार के सदस्यों से भी इस बारे में सलाह और सपोर्ट लें।

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