श्रीकृष्ण का ज्ञान: एक सच्ची कहानी जो सोच और जीवन पलट देगी
Power of Positive Attitude: महाभारत को भारतीय बहुत सम्मान देते हैं। कहते हैं, जीवन में घटने वाली हर बात महाभारत से जुड़ी है। श्रीकृष्ण ने सकारात्मक सोच के बारे में कितनी अच्छी तरह बताया है, यह जानकर आपकी सोच बदलना तय है।
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एक दिन दुर्योधन और धर्मराज, श्रीकृष्ण के पास जाते हैं। दुर्योधन, कृष्ण से कहता है, 'मेरे सौ भाई हैं। मैं सबका सहारा हूं। धर्मराज अपने भाइयों पर निर्भर हैं। उनसे उनके भाइयों का सिर्फ नुकसान हुआ है, फ़ायदा नहीं। जुआ बुरा है, यह जानकर मैंने खुद नहीं खेला, अपने मामा से खेलवाया। वहीं धर्मराज ख़ुद जुए में उतरे, और अपनी पत्नी को भी दांव पर लगा दिया। फिर भी सब धर्मराज को ही अच्छा कहते हैं। आख़िर क्यों?'
कृष्ण जवाब देते हैं, 'मैं उत्तर दूँगा, पर पहले तुम दोनों एक काम करोगे?' दोनों हाँ कहते हैं। कृष्ण, दुर्योधन से कहते हैं, 'जाओ, अपने से अच्छे पाँच लोगों को लाओ।' और धर्मराज से कहते हैं, 'जाओ, अपने से बुरे पाँच लोगों को लाओ।' और उन्हें भेज देते हैं।
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शाम को दोनों खाली हाथ लौटते हैं। कृष्ण, दुर्योधन से पूछते हैं, 'क्या हुआ? किसी को क्यों नहीं लाए?' दुर्योधन कहता है, 'मुझसे अच्छा कोई नहीं मिला। सबमें मुझसे भी कोई न कोई बुराई दिखी। इसलिए खाली हाथ आया हूँ।' धर्मराज कहते हैं, 'मैंने अपने से बुरे लोगों को ढूँढा, पर कोई नहीं मिला। सबमें कोई न कोई अच्छाई दिखी। इसलिए किसी को नहीं लाया।'
यह सुनकर कृष्ण कहते हैं, 'देखा दुर्योधन, तुमने लोगों में बुराई देखी, इसलिए कोई नहीं मिला। धर्मराज ने लोगों में अच्छाई देखी, इसलिए वे धर्मराज कहलाए, लोग उनकी प्रशंसा करते हैं। यही तुम दोनों में अंतर है।' दुर्योधन को बात समझ आ जाती है।
सीख: आजकल समाज में नकारात्मकता बढ़ रही है। हर जगह गलतियाँ ढूँढने वाले ज़्यादा हैं। इसलिए सकारात्मक सोच ज़रूरी है। हर व्यक्ति में कोई न कोई अच्छाई होती है। उसे पहचानें, तो क्रोध और ईर्ष्या जैसे भाव नहीं रहेंगे, यही इस कहानी का संदेश है।
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